पहाड़ी चित्रकला शैली

पहाड़ी चित्रकला शैली

पहाड़ी चित्रकला शैली के अंतर्गत हिमालय -पंजाब व जम्मू क्षेत्र में विकसित कला आती हैं| इस ब्लॉग में हम पहाड़ी चित्रकला शैली की उत्पत्ति व विकास के साथ-साथ बसौली के बारे में देखेंगे| कांगड़ा शैली भी पहाड़ी शैली की एक उप शैली है|

चलिए हम इस पहाड़ी चित्रकला शैली लेख में इन बिन्दुओं पर विस्तार से अध्ययन करते हैं:

  1. पहाड़ी चित्रकला शैली का परिचय
  2. पहाड़ी चित्रकला शैली खोज
  3. प्रष्ठभूमि
  4. चित्रों के विषय
  5. चित्रों में प्रयुक्त सामग्री
  6. पहाड़ी शैली के अंतर्गत आने वाली शैलियाँ 
  7. परीक्षा उपयोगी प्रमुख पॉइंट्स
  8. बसोहली शैली

पहाड़ी चित्रकला शैली का परिचय

हिमालय-पंजाब व जम्मू की सुरम्य घाटियों में विकसित समस्त कला शैली को पहाड़ी क़लम या पहाड़ी स्कूल कहा जाता है| यह शैली बीसवीं शताब्दी के आरंभ में विकसित हुई थी|

यह शैली स्थानीय प्राकृतिक सुन्दरता व मुग़ल चित्रकला की वैभवता का एक मिला जुला सुंदर रूप था|

खोज

इस शैली की खोज आनंद कुमार स्वामी ने की थी| उन्होंने पहाड़ी चित्रों को निम्नलिखित दो भागों में बांटा:

  1. उत्तरी-चित्रमाला- कांगड़ा स्कूल के चित्र
  2. दक्षिणी-चित्रमाला- डोंगरी जम्मू स्कूल के चित्र (इसे ही बसोहली कला कहा जाता है|

पहाड़ी चित्रकला शैली की प्रष्ठभूमि

  • जैसा की बताया जा चूका है कि पहाड़ी क़लम पहाड़ी स्थानीय सुन्दरता व मुग़ल कला शैली का एक मिला-जुला रूप था।
  • अब सवाल उठता है कि पहाड़ी शैली में मुग़ल मिश्रण कहाँ से हुआ।
  • वास्तव में हुआ ये कि 17वीं शती में औरंगजेब की उपेक्षा व 18 वीं शती के मध्य में मुग़ल साम्राज्य के छिन्न-भिन्न हो जाने से बादशाही चित्रकार निराश्रित हो गये।
  • उनके आश्रयदाता अब नही रहे थे। इसलिए दिल्ली से पहला निराश्रित कलाकारों का दल जम्मू और पंजाब के पहाड़ी राज्यों में जा कर बसा| संभवतः इन चित्रकारों ने चम्बा तथा बसोहली शैली को जन्म दिया|
  • 1736  ई. में नादिर शाह के आक्रमण तथा 1747 में अहमदशाह दुर्रानी के आक्रमण के पश्चात् सिक्खों व मराठों के आक्रमण से दिल्ली राज्य विध्वंस हो गया था। अतः हिन्दू व मुस्लिम चित्रकार दिल्ली छोडकर फिर से पहाड़ी राज्यों की ओर गया।
  • कलाकारों की ये टोली कांगड़ा में पहुंची जिसने कांगड़ा शैली को जन्म दिया|
  • इस प्रकार मुग़ल चित्रकारों के पहाड़ी राज्यों में आश्रय लेने से व वहां स्थानीय कला परिवेश के समन्वय से जो जो नयी चित्रशैली पनपी वो पहाड़ी शैली कहलाई|

चित्रों के विषय

पहाड़ी शैली के चित्र शास्त्रीय साहित्य, संगीत व स्थानीय संस्कृति से प्रेरित थे| मुग़ल चित्रकला की वैभवता ने इन्हें और आकर्षक बना दिया था| पहाड़ी चित्र शैली के चित्रकार प्रकृति व महिलाओं की सुन्दरता को विशेष रूप से अपने चित्रों में व्याप्त किया करते थे | सरक्षकों के व्यक्तिचित्र भी इस शैली में खूब बनाये गये हैं| कुलमिला कर प्रकृति, स्त्री के चित्रों के साथ साथ सरक्षकों के व्यक्तिचित्र इस शैली में प्रमुखता से बने हैं|

चित्रों में प्रयुक्त सामग्री

  • इस शैली के चित्र हस्त निर्मित कागज़ पर बनाये गए|
  • ये कागज़ बांस, कपास व अन्य सामग्रियों से बनाया जाता था|
  • यह कागज़ ‘सियाल कोटि” कागज़ के नाम से जाना जाता था|
  • रेखांकन के पश्चात् इन चित्रों पर सफ़ेद रंग की एक परत चढाई जाती थी|

पहाड़ी चित्रकला शैली के अंतर्गत आने वाली शैलियाँ

पहाड़ी शैली में अलग-अलग क्षेत्रों में निम्नलिखित कला शैलियां विकसित हुईं:

  • बसोहली चित्रशैली
  • चम्बा चित्रशैली
  • गुलेर चित्रशैली
  • कांगड़ा चित्रशैली
  • कुल्लू चित्रशैली
  • मण्डी चित्रशैली

परीक्षा उपयोगी प्रमुख पॉइंट्स

  • पहाड़ी शैली 18 वीं शताब्दी से आरंभ हुई| इसका जन्म गुलेर शैली से भी मन जाता है|
  • सबसे अधिक कृष्ण-लीला के चित्र पहाड़ी शैली में बनाये गए|
  • चित्रों में गहरे रंग का प्रयोग किया गया है|
  • इस शैली में नारी व प्रकृति के चित्रण को अधिक महत्त्व दिया गया है|
  • प्रसिद्ध चित्रकारों में मानकु, चौत्तुशाह व मौला राम हैं|
  • गड्वाली उपशैली के प्रसिद्ध चित्रकार मानकु ने प्रसिद्ध ग्रन्थ “गीत गोविन्द” व “बिहारी सतसई” को चित्रित किया|

बसोहली शैली

भौगोलिक स्थिति

वर्तमान में बसोहली रावी घाटी में स्थित एक छोटे सा गाँव है| यह वर्तमान में जम्मू के कठुआ जिले के अंतर्गत आता है|

वैसे तो बसोहली क्षेत्र की द्रष्टि से एक छोटा सा राज्य था| परन्तु सांस्कृतिक क्षेत्र में विशेष योगदान के करण इसका एक विशेष महत्त्व है|

बसूली के कला संरक्षक राजा

  • बसोहली शहर बसोहली शैली का प्रमुख केंद्र रहा है|
  • जैसा की बताया जा चूका है की ये जम्मू राज्य के जसरोटा जिले में एक तहसील के रूप में स्थित है|
  • बसोहली के राजा अपने आप को पांडवों का वंशज मानते थे| सन 765 ई. में कुल्लू में राजा भोग्पाल ने इसकी स्थापना की थी|
  • यहाँ की राजधानी बालौर या बल्लापुर थी जिसके कारण ये राजा स्वयं को बल्लोरिया भी कहते थे|
  • राजा कृष्णपाल के काल से चित्रों की परम्परा प्रारंभ हुई|
  • राजा कृष्णपाल सर्वप्रथम अकबर के मुग़ल दरबार में 1560 ई. में बहुमूल्य उपहार समित उपस्थित हुआ|
  • कृष्णपाल के बाद उसका पौत्र भूपतपाल राजा बना| मगर उसका समकालीन नूरपुर का राजा जगतसिंह उससे जलता था|
  • उसने मुग़ल सम्राट जहाँगीर को भूपतपाल के विरुद्ध भड़का दिया था| जिसके फलस्वरूप भूपतपाल को  मुग़ल कारागार में डाल दिया गया|
  • परन्तु भूपतपाल कारागार से भाग निकला और उसने अपना राज्य फिर से प्राप्त किया|
  • आधुनिक नगर बसोहली की स्थापना राजा भूपतपाल ने की थी| वह शाहजहाँ के दरबार में उपस्थित हुआ था|
  • शाहजहाँ का सम्मान करते हुए भूपतपाल को एक चित्र में दिखाया गया है जो डोगरा आर्ट गैलरी (जम्मू) में सुरक्षित है|
  • राजा भूपतपाल के पश्चात् उसका कम आयु का पुत्र संग्रामपाल 1635 ई. में गद्दी पर बैठा|
  • राजकुमार संग्रामपाल बहुत ही सुंदर व बड़ी-बड़ी आँखों के युवराज थे|
  • जब राजा संग्रामपाल का सम्मान शाहजहाँ के दरबार में हुआ तो शाहजहाँ के पुत्र दाराशिकोह की बेगमों ने उसको देखने की इच्छा प्रकट की|
  • उनके सौंदर्य पर मुग्ध हो कर बेगमों ने उन्हें कई उपहार दिए| संभवतः इसी समय मुग़ल चित्रकारों से उनका परिचय हुआ होगा|
  • इस शैली का सबसे अधिक विकास राजा कृपालपाल के शासन काल में हुआ| राजा कृपालपाल विद्वान् व कला प्रेमी थे|

बसोहली शैली के चित्रों के विषय

धार्मिक चित्र: इस शैली में वैष्णव धर्म की विचारधारा और भक्ति भावना दिखलाइ पड़ती है| इस शैली में विष्णु तथा उनके दस अवतारों के चित्र प्राप्त हुए है| इस शैली में रामायण को भी चित्रित किया गया है|

काव्य व रागमाला:

  • राजा कृपालपाल का प्रिये काव्य ग्रन्थ ‘रस मंजरी’ था| ‘रस मंजरी’ में नायक-नायिका, श्रंगार व रसों को सुन्दरता से वर्णित किया गया| किन्तु इसमें कृष्ण का वर्णन नही है|
  • संभवतः राजा कृपालपाल ने ही चित्रकारों से रस मंजरी के चित्रों में कृष्ण को आदर्श प्रेमी के रूप में चित्रित करवाया होगा|
  • कृपालपाल के समय के मुख्य चित्रकार ‘भानुदत्त’ ने रस मंजरी की सचित्र प्रति तैयार  की थी|
  • इसके अतिरिक्त जयदेव के गीत गोविन्द, बारह-मास और राग माला पर आधारित चित्र भी बनाये गये|
  • इन बारह-मास व राग मालाओं के चित्रों में कृष्ण व् राधा को नायक-नायिका के रूप में चित्रित किया गया|

व्यक्ति चित्र

इस शैली में संरक्षकों राजाओं के साथ साथ दरबारियों के, सम्मानित सदस्यों जैसे विद्वानों, संगीतज्ञों व संतों के व्यक्ति चित्र भी बनाये गये|

बसोहली चित्र शैली की विशेषताएं

हाशिये तथा लेख

बसोहली शैली के चित्रों में हाशिये भी बनाये गए हैं| ये हाशिये गहरे लाल रंग की पट्टी से बनाये गए हैं| ये हाशिये कहीं-कहीं लाल रंग के स्थान पर पीले रंग की पट्टी में दिखाए गये हैं| रस मंजरी तथा गीतगोविन्द के चित्रों के पीछे संस्कृत काव्य से सम्बंधित अंश लिखे हुए हैं| टाकरी लिपि में हाशिये के उपरी भाग में शीर्षक भी दिए गए हैं|

रंग

बसोहली शैली के चित्रों के आकर्षण का प्रमुख कारण इनके चटक व चमकीले रंग हैं| यह रंग शुद्ध रूप से प्राथमिक विरोधी रंगों के रूप में प्रयोग किये गए हैं| चित्रकारों ने लाला तथा पीले रंगों को चमकदार व बिना मिलाये प्रयोग किया है जो दर्शकों को आकर्षित करता है|

चित्रकारों ने रंगों का प्रयोग प्रतीकात्मक आधार पर किया है जैसे-

पीला रंग – वसंत तथा सूर्य के ताप या प्रकाश का प्रतिक, प्रेम ज्वार का प्रतिक

नीला रंग- कृष्ण, वर्षा के बादलों के लिए

लाल रंग- प्रेम के देवता, श्रंगारिक द्रश्यों के लिए

प्रकृति

प्रकृति का प्रतीकात्मक प्रयोग हुआ है जो चित्रों से पूरी तरह जुडा रहता है| क्षितिज रेखा चित्र में उपर की और दिखाई गयी है| शायद गहराई को देखने के लिए ऐसा किया गया है| वृक्ष, बादल, सरोबर, बिजली, भवन व फुल-पत्तियां सभी आलंकारिक हैं| ज्यदातर आम, मंजनुं, अखरोट तथा मोरपंखी के वृक्ष बनाये गए हैं|

बादल व वर्षा

इस शैली की एक और विशेषता इसमें चित्रित किये गये बादल, बिजली व वर्षा हैं| बादलों को प्रायः पतली, लम्बी, लहरदार बत्तियों या चक्राकृतियों कर माध्यम से दिखाया गया है| बिजली को सोने के रंग से सर्पाकार बनाया गया है| हल्की बारिश को सफ़ेद रंग की बिन्दुओं से व तेज़ बारिश को सीधी रेखाओं से दिखाया गया है| पानी में कमल के फूलों को भी बनाया गया है| कभी कभी इनके साथ बगुले भी बनाये गये हैं जिनसे नदियों या सरोबर का किनारा और अधिक सुंदर बन गया|

पशु

इस शैली के चित्रों में पशुओं का भी काफी अंकन हुआ है|चित्रों में पतली दुबली गायों का अंकन हुआ है जिनके कान लम्बे व सिंग मुड़े हुए हैं| इस नस्ल की गायें आज भी जम्मू में पायी जातीं हैं|

वस्त्र व पहनावा
  • इस शैली में पुरषों व महिलाओं के परिधान अलग चित्रित हुए हैं|
  • पुरषों के परिधान में औरंगजेब कालीन घेरदार जामा व पीछे झुकी हुयी पगड़ी है|
  • वहीँ महिलाओं को कसा हुआ सुथन (पाजामा), चोली व झीना पेशबाज पहनाया गया है|
  • स्त्रियों को कभी-कभी छींटदार घाघरा, चौली और पारदर्शी दुपट्टा ओढे दिखाया गया है|
  • कृष्ण को पीली धोती पहने ही बनाया गया है और सिर पर मुकुट तथा मोरपंखी चित्रित किया गया है|
मानवाकृतियाँ
  • इस शैली में मुखाकृतियाँ मौलिक हैं।
  • इन्हें स्थानीय लोक कला की सद्भावना मन जाता है।
  • इस शैली का विकास इन्हीं लोक कला के आधार पर विकास हुआ है।
  • ढलवां ललाट, माथे में से निकलती हुई ऊँची लम्बी नाक है। नेत्रों को कमलाकार रूप प्रदान किया गया है।
  • बादामी रंग के शारीर वाली नायिकाएं बसोहली शैली को चित्रकारों को प्रिये थीं।
  • नारी आकृतियाँ पुरुषों की भाँती ओजपूर्ण बने गयीं हैं। चेहरे प्रायः एक चश्म ही अंकित किये गए हैं।
आभूषण

इस शैली के चित्रों में आकृतियों को आभूषणों से सजाया गया है |

यहाँ तक की राक्षसों को भी अभोषणों से युक्त बनाया गया है| चित्रों में विभिन्न रत्नों को दिखाया गया है जिसमें की मुकुट, हार, कुंडल, भुजबंद आदि प्रमुख हैं|

भवन
  • बसोहली शैली में भवनों को भी चित्रों में बनाया गया है।
  • आलेखन युक्त दरवाज़े, जालीदार खिड़कियाँ, नक्काशीदार लकड़ी या पत्थर के स्थम्भों से युक्त भवन बहुत मुगलकालीन शैली से मिलते हैं।
  • दीवारों को सुंदर ताखों या आलों से सजाया गया है।

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