पदम भूषण डी. पी. राय चौधरी (D P Rai Chaudhary) एक प्रसिद्ध मूर्तिकार व चित्रकार हैं। कांस्य में निर्मित इनकी मूर्ति आज सम्पूर्ण भारत में देखने को मिल जाती ही। ये वो मूर्तिकार हैं जिनकी बनाई मूर्तियों के चित्र भारत के नोट (पत्र मुद्रा) पर भी अंकित की गयी। तो चलिए इस महान कलाकार के बारे में विस्तार से चर्चा करें।
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संक्षिप्त जीवन परिचय व कला शिक्षा
डी पी राय चौधरी (D P Rai Chaudhary) का जन्म 15 जून 1899 में ताजहाट बंगाल में हुआ था। यह स्थान अब बंगलादेश में है। प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने अपने घर में ही पूरी की। इनकी कला शिक्षा अबनिंद्रनाथ टैगोरे के निर्देशन में हुई। इनके प्रारम्भिक चित्रों में इनके गुरु के प्रभाव को देखा जा सकता है।
डी पी राय चौधरी (D P Rai Chaudhary) ने मूर्तिकल की शिक्षा हिरोमोनी चौधरी से ली। उनकी रुचि मूर्तिकल में अधिक थी। बाद में वे मूर्तिकल की शिक्षा लेने के लिए इटली गए। भारत लौट कर उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए बंगाल स्कूल ओफ़ आर्ट में प्रवेश लिया। फिर सन 1928 में वे चेन्नई के सरकारी ललितकला महाविद्यालय पहले एक छात्र के रूप में फिर बाद में एक शिक्षक के रूप में सक्रिय रहे। वे चेन्नई के राजकीय महाविद्यालय में ललित कला विभाग के विभगाध्यक्ष बने। बाद में उपप्राचार्य के रूप में काम करने लगे। फिर प्राचार्य बने व अपने सेवनिव्रत्ति तक प्राचार्य बने रहे।
सन 1954 में ललितकला अकादमी की स्थापना हुई। आपको इस अकादमी का संस्थापक अध्यक्ष बनाया गया।
उपलब्धियाँ
- 1937 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें एम बी ई (Member of the Most Excellent Order of the British Empire) से सम्मानित किया था।
- 1954 में वे ललितकला अकादमी के संस्थापक अध्यक्ष बने।
- टोकियो में हुए कला सेमिनार (1955) में उन्होंने UNESCO के प्रेसिडेंट के रूप में काम किया।
- (1956) चेन्नई में हुए निखिल भारत बंगीय साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया।
- (1962) ललितकला अकादमी ने उन्हें अकादमी का फ़ेलो चुना।
- (1958) भारत सरकार ने उन्हें तीसरे सर्वोत्तम नागरिक सम्मान पदम भूषण से सम्मानित किया।
प्रमुख कलाकृतियाँ व कला
देवी प्रासाद राय चौधरी (D P Rai Chaudhary) भारत के एक प्रसिद्ध चित्रकार व मूर्तिकार हैं। विशेषकर मूर्तिकल में उनका योगदान मुख्य रूप से उल्लेखनीय है। उनकी मूर्तिकल पर फ़्रांसीसी मूर्तिकार ऑगस्टे रोडिन का प्रभाव है।
वे कांस्य की मूर्तिकला के रूप में जाने जाते हैं। कांस्य से निर्मित श्रम की विजय व शाहिद स्मारक उनकी सबसे लोकप्रिय कृतियों में से हैं।
वे एक अच्छे चित्रकार भी थे। एक क़ैदी, रास लीला, टोपी, एक बड़े लबादे में एक आदमी की नाटकीय मुद्रा, भूतिया औरत, तिब्बत की बालिका, व पूज़रिने आदि उल्लेखित चित्र है।
प्रमुख कृतियाँ
शहीद स्मारक
शहीद स्मारक मूर्ति पटना सचिवालय के बाहर स्थित है। इसमें धोती कुर्ता पहने हुए सात व्यक्ति दर्शाए गए हैं। ये व्यक्ति विरोध प्रदर्शन में आगे को मार्च कर रहे हैं। पहली आकृति जो सबसे आगे है वो झंडा पकड़ें है और आगे मंज़िल की ओर इशारा कर रही है। उसके पीछे तीन आकृतियाँ गिरती हुयीं प्रतीत होतीं हैं। बाक़ी अन्य आगे बड़ रहीं हैं। यह मूर्ति भारत की आज़ादी के बाद बनवायी गयी थी। इसका अनावरण लोगों के लिए 1956 में किया गया।
यह कृति शाहिद स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में बनवायी गयी थी। क्रांतिकारियों ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अपने प्राणों की बाली दी थी।
शहीद स्मारक मूर्ति के पीछे का इतिहास
- भारत छोड़ो आंदोलन के तहत गांधी जी की पुकार पर पूरा देश सड़कों पर उतर आया था।
- क्रांतिकारियों ने अहिंसात्मक विरोध प्रदर्शन किए थे।
- जिसके परिणामस्वरूप डॉ राजेंद्र प्रसाद साथ-साथ अन्य क्रांतिकारी नेताओं को अंग्रेजों ने गिरफ़्तार कर लिया था।
- इससे नाराज़ हो कर क्रांतिकारी डॉक्टर अनुराग नारायण और श्रीकृष्ण सिन्हा पटना सचिवालय के सामने कोंग्रेस का झंडा लेकर विरोध प्रदर्शन के लिए बड़े।
- इनकी गिरफ़्तारी के बाद 11 अगस्त 1942 को पूरे बिहार से 6000 छात्र पटना में विरोध प्रदर्शन के लिए जमा हुए।
- भीड़ को तितर-वितर करने के लिए पटना के मैजिस्ट्रेट ने गोली चलाने के आदेश दिए। जिसमें 7 लोग मारे गए व 14 ज़ख़्मी हुए। इन सातों शहीदों के नाम इस मूर्ति में उकेरे गए।
ग्यारह मूर्ति (दांडी मार्च)
ग्यारह मूर्ति भारत की सबसे लोकप्रिय मूर्ति है। लगभग हर भारतवासी ने इसको देखा है क्यूँकि ये भारत के नोट पर छपी गयी थी। गूगल ने इस महान करती को अपने डूडल पर जगह दी थी।
यह महत्वपूर्ण मूर्ति नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के बाहर स्थापित है। यह सरदार पटेल मार्ग के अंत में टी जंक्शन पर स्थित है। इसको भारत सरकार ने 1962 में बनवाया था।
ग्यारह मूर्ति (दांडी मार्च) मूर्ति के पीछे का इतिहास
- इस मूर्ति में 1930 के दांडी मार्च के द्रश्य को दिखाया गया है।
- इसमें गांधी जी आगे को बड़ रहे हैं और उनके पीछे 10 लोग चल रहे है।
- यह कृति सत्याग्रह की भावना को बखूबी दिखाती है।
- नामक के क़ानून के विरोध में दांडी यात्रा के ये द्रश्य है।
- ऐसा माना जाता है कि इन मूर्तियों में मतंगिनी हज़ारे, सरोजनी नायडू, ब्रह्मबँधन उपाध्याय और अब्बास तयबजी की आकृतियाँ हैं।
- कुछ लोग मानते हैं की ये आकृतियाँ सभी वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व करतीं है।
इस कृति की लम्बाई 26 मीटर व ऊँचाई 3 मीटर है। इस नायब कलाकृति को बनने में 6 वर्ष लग गए थे। इसके पूरा होने से पहले ही डी पी राय चौधरी की मौत हो गयी थी। इनकी मृत्यु के पश्चात उनकी पत्नी व छात्रों ने इसको पूरा किया।
श्रम की विजय
- श्रम की विजय डी पी राय चौधरी द्वारा निर्मित महान मूर्तियों में से एक है।
- इसको लेबर स्टैचू के नाम से भी जाना जाता है। यह चेन्नई के मरीन बीच पर स्थापित है।
- बिलकुल ऐसी ही एक मूर्ति राष्ट्रीय आधुनिक कला गैलरी नई दिल्ली में भी है।
- इस मूर्ति का अनावरण 25 जनवरी 1959 को गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर किया गया था।
इतिहास
- 1 मई 1923 को सिंगरावेलर चेट्टियर ने भारत की पहला मज़दूर दिवस या मई दिवस आयोजित किया।
- इसी दिन कामगार वर्ग के हितों व अधिकारों की रक्षा के लिए उन्होंने मज़दूर किसान पार्टी भी बनयी।
- इससे पूर्व गांधी जी के नेत्रत्व में भारतीय राष्ट्रीय कोंग्रेस में थे।
- रुस की क्रांति के ६ माह बाद उन्होंने अन्य लोगों के साथ 1918 में मद्रास मज़दूर यूनियन बनई थी।
- ये भारत की पहली ट्रेड यूनियन थी।
- बकिंगम व कर्नाटिक मिल में मज़दूरों पर ब्रिटिश शोषण के ख़िलाफ़ यूनियन ने ६ महीने की लम्बी हड़ताल की थी।
- मूर्ति को उसी स्थान पर स्थापित किया गया जहां सिंगरावेलर ने पहला मई दिवस मनाया था।
निष्कर्ष
डी पी राय चौधरी भारतीय कला का कोई मामूली नाम नहीं है। ये वो शख़्स हैं जिनकी कला आज़ाद भारत की पहचान बनीं। आधुनिक भारतीय कला में इनकी मूर्तियाँ भविष्य के नवोदित मूर्तिकारों के लिए प्रेरणा श्रोत बनीं। यह कलाकार बंगाल शैली का एक शानदार मूर्तिकार था।
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