कम्पनी स्कूल (Company School) या कंपनी शैली या पटना स्कूल कही जाने वाली ये कला शैली भारत में 18वीं व 19वीं सदी में विकसित हुयी| कम्पनी स्कूल (Company School) पटना स्कूल या पटना कलम भी कहा गया।
ये शैली यूरुपीय कला शैली व मुग़ल शैली के मिश्रण से उदित हुयी| यह शैली कम्पनी शैली (Company School) के नाम से इस लिए भी मशहूर हुयी क्यूंकि यह शैली ईस्ट इंडिया कंपनी के संरक्षण में फली-फूली|
कुछ विद्वानों ने इसे पटना शैली भी कहा मगर यह नाम ठीक नहीं था क्यूंकि इस शैली का प्रभाव बंगाल से सिंध तक, पंजाब से महाराष्ट्र तक, एवं नेपाल में भी था| इस शैली का प्रभाव ईस्ट इंडियन कंपनी व अंग्रेजों के साथ-साथ बढा था| अतः इसलिए इसे कंपनी शैली कहना ही ठीक है|
- एतिहासिक प्रष्ठभूमि
- पटना शैली कहे जाने के कारण
- कम्पनी स्कूल (Company School)का विकास
- कंपनी स्कूल के चित्रकार
- कला महाविद्यालय व संगठन
- चित्रों की विशेषताएं
- विदेशी/यूरोपीय चित्रकारों का भारत आगमन
- इस शैली का प्रभाव
- कंपनी शैली का पतन
- निष्कर्ष
एतिहासिक प्रष्ठभूमि
- 1600 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना भारत में व्यापर करने के उदेश्य से की गयी| किंतु ईस्ट इंडिया कंपनी के कुटनीतिक तरीकों से 1857 तक भारत के अधिकांश भागों पर ब्रिटिश सरकार का अधिकार हो गया था|
- मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद, राजाश्रित कलाकार यहाँ-वहां भटकने लगे| इनमें से कुछ बड़े बड़े शहरों में जा कर बसे तथा कुछ को ब्रिटिश अधिकारीयों ने प्रत्साहन दिया|
- ब्रिटिश साम्राज्य के कारण कंपनी के अधिकारीयों व अंग्रेजी पर्यटकों का भारत में आना शुरू हो गया| उस समय कैमरा ना होने के कारन यहाँ के स्मरण स्वरुप इन अधिकारीयों व पर्यटकों को चित्र बनवाने की आवशयकता हुयी|
- उनकी इन आवश्यताओं की पूर्ति यहाँ के कलाकारों ने की व उनकी रूचि के अनुरूप चित्र बनाना आरंभ कर दिया|
- कंपनी अधिकारीयों के साथ-साथ वहां के कई चित्रकार भी भारत आये जिनकी कला का प्रभाव यहाँ के स्थानीय चित्रकारों पर भी पडा|
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पटना शैली कहे जाने के करण
- इस शैली को पटना शैली भी कहा गया जिसका एक प्रमुख कारण यह था कि 18 वीं सदी के अंतिम वर्षों में मुर्शिदाबाद (बंगाल) के राजाश्रित चित्रकार वहाँ के राज्य की शासन व्यवस्था के झिन्न-भिन्न होने के कारण पटना आकर बस गये थे|
- पटना में 17 वीं सदी से ही कुछ मुग़ल चित्रकार अंग्रेज संरक्षकों हेतु चित्रण कर रहे थे| उस समय पटना अपने व्यापारिक समृद्धि पर था और कंपनी की यहाँ सुद्रण शासन व्यवस्था थी|
- परन्तु धीरे धीरे ये शैली लाहौर, दिल्ली, लखनऊ, बनारस, मुर्शिदाबाद, पूना, नेपाल व तंजौर आदि स्थानों तक प्रचलित हो गयी थी|
- अतः इसे पटना शैली कहना ठीक नही था|
कम्पनी स्कूल को आप इस विडीओ में देख व सुन भी सकते हैं:
कम्पनी स्कूल (Company School) का विकास
- जैसा कि बताया जा चुका ही की ईस्ट इंडिया कंपनी के बड़ते प्रभाव के साथ –साथ इस शैली का विकास हुआ| यूँ भी कहा जा सकता है कि मुग़ल व यूरोपीय कला शैली के मिलन से जो नयी कला शैली पनपी वो कंपनी शैली है
- भारत में कंपनी अधिकारीयों के साथ-साथ लगभग 50 चित्रकार भी भारत आये| जिनके साथ तैल चित्रण की तकनीक भी भारत में आयी| इन चित्रकारों का प्रभाव यहाँ के स्थानीय चित्रकारों पर भी पडा|
- विदेशी कलाकारों में विलियम डेनिअल व थोमसन डेनिअल अच्छे लैंडस्केप आर्टिस्ट थे। जिन्होंने उस समय के भारतीय परिवेश व जनजीवन को दर्शाते हुए भारत के अनेक स्मारकों व द्रश्यों के सुंदर द्रश्य चित्र बनायें| एक और चित्रकार विलियम सिम्पसन भी भारत आये थे जो युद्ध द्रश्यों को बनाने में माहिर थे|
कंपनी स्कूल (Company School) के चित्रकार
- वेसे तो लगभग 50 से ज्यादा चित्रकार अंग्रेगी अधिकारीयों के साथ भारत आये थे | मगर कुछ चित्रकारों का काम आज भी देखने को मिलता है जिनमें डिनायल बंधू विलियम डेनिअल व थोमसन डेनिअल व विलियम सिम्पसन है|
- इनके अतिरिक्त भारतीय चित्रकारों में सेवक राम, शिवलाल, हुल्लास लाल, झुमकलाल, इश्वरी प्रसाद, गोपाल चंद, लाल चंद, फ़कीर चंद, रामप्रसाद, सीताराम आदि प्रमुख हैं |
- इश्वरी प्रसाद को कंपनी स्कूल का अंतिम चित्रकार मन जाता है, जिनका निधन 1950 में हुआ था|
- राजा रवि वर्मा का योगदान भी इस शैली के अन्तरगत बहुत महत्वपूर्ण है| वे पहले भारतीय चित्रकार माने जाते हैं जिन्होंने तैल रंग को भारत में प्रयोग किया|
कला महाविद्यालय व संगठन
कंपनी राज में कई कला महाविद्यालय खोले गये जिन्होंने उस समय से ले कर आज तक भारत की कला में कई महत्वपूर्ण योगदान दिया है| तो चलिए जानते हैं कि कंपनी शैली में कितने आर्ट कॉलेज खुले:
- कॉलेज ऑफ़ आर्ट एण्ड क्राफ्ट मद्रास(चिन्नई)(1850)
- कॉलेज ऑफ़ आर्ट एंड क्राफ्ट कलकात्ता (कोलकाता)(1854)
- बॉम्बे कॉलेज ऑफ़ आर्ट (मुंबई)(1857)
- कॉलेज ऑफ़ आर्ट एंड क्राफ्ट लाहौर(1875)आर्ट कॉलेज के अलावा एक कला संगठन भी 1907 ईस्वी. में अस्तित्व में आया जिसका नाम था।
- इंडियन सोसाइटी ऑफ़ ओरिएण्टल आर्ट- इसका उदेश्य भारतीय कला को प्रात्साहित करना था| इसकी स्थापना टैगोर बंधुओं- गगंद्रनाथ टैगोर, समरेन्द्र नाथ टैगोर, अबनिन्द्रनाथ टैगोर ने ई. वी. हेवेल के साथ मिल के की थी| इस संगठन के प्रयासों से आगे बंगाल शैली विकसित हुई।
- इस सोसाइटी को ब्रिटिश सरकार का सहयोग मिला हुआ था| इस सोसाइटी की पहली प्रदर्शनी 1908 में हुयी थी | आगे चल के इस सोसाइटी ने रूपम नामक कला पत्रिका भी निकाली|
(यह वीडियो राजा रवि वर्मा के बारें में भी मेरा उपलब्ध है। इसे जरुर देंखे क्यूंकि उनको बारे में जाने बगैर कंपनी शैली को समझना अधूरा है|)
कंपनी स्कूल के चित्रों की विशेषताएं
- मुग़ल व यूरोपीय शैली के मिश्रण में छाया-प्रकाश द्वारा यथार्थवादी प्रभाव लाने का प्रयास किया गया|
- चित्रों को बसली कागज़ पर बनाया गया है जो नेपाल से आता था| छोटे आकार के कैनवास चित्रों का भी चित्रण किया गया|
- चित्र के अकार की बात करें तो अधिकतर छोटे अकार के चित्र 8X6’’ के व बड़े अकार के चित्र 22X16’’ के बनाये गये|
- फिरका नामक एक 6 चित्रों का एल्बम बनाया जाता था जिसे अंग्रेज अधिकारी भारत के स्मरण स्वरुप अपने साथ इंग्लैंड ले जाने को चित्रित करवाते थे|
- अभ्रक के पत्तों व हाथी दांत पर भी कुशल चित्रांकन किया गया है|
- चित्रों में छाया प्रकाश के साथ-साथ मुग़ल शैली की बारीक़ रेखाओं से चित्रों की आउट-लाइन बनायीं गयी| आभूषणों व वस्त्रों को भी बड़ी बारीकी से बनाया गया है|
- प्राकृतिक चित्रण को वैज्ञानिक परिपेक्ष्य के आधार पर चित्रित करने का प्रयास किया गया है|
- इस शैली के विषय मुख्य रूप से आश्रयदाताओं के व्यक्तिचित्र, भारतीय जनजीवन के द्रश्य तथा धार्मिक चित्र रहे हैं|
- जल रंगों का प्रयोग गोंद मिला कर अंग्रेजी पद्धति के अधार पर किया गया है|
- जैसा कि बताया जा चुका ही की ईस्ट इंडिया कंपनी के बड़ते प्रभाव के साथ–साथ इस शैली का विकास हुआ| यूँ भी कहा जा सकता है कि मुग़ल व यूरोपीय कला शैली के मिलन से जो नयी कला शैली पनपी वो कंपनी शैली है।
विदेशी/यूरोपीय चित्रकारों का भारत आगमन
- भारत में कंपनी अधिकारीयों के साथ-साथ लगभग 50 चित्रकार भी भारत आये| जिनके साथ तैल चित्रण की तकनीक भी भारत में आयी| इन चित्रकारों का प्रभाव यहाँ के स्थानीय चित्रकारों पर भी पडा|
- विदेशी कलाकारों में विलियम डेनिअल व थोमसन डेनिअल अच्छे लैंडस्केपआर्टिस्ट थे। जिन्होंने उस समय के भारतीय परिवेश व जनजीवन को दर्शाते हुए भारत के अनेक स्मारकों व द्रश्यों के सुंदर द्रश्य चित्र बनायें| एक और चित्रकार विलियम सिम्पसन भी भारत आये थे जो युद्ध द्रश्यों को बनाने में माहिर थे|
इस शैली का प्रभाव
- राजाश्रत चित्रकारों का अलग अलग स्थानों पर जा कर चित्रकारी करने से अलग-अलग चित्रशैली पनपी। जैसे कि पहाड़ी शैली, पटना शैली, व कम्पनी शैली।
- इस समय विदेशों से कई अच्छे चित्रकारों का आना जाना हुआ। इन चित्रकारों की कला का प्रभाव भी भारतीय चित्रकारों पर पड़ा।
- तैल चित्रण तकनीक इसी युग में भारत में आयी। राजा रवि वर्मा सबसे पहले भारतीय चित्रकार थे जिन्होंने इस तकनीक का प्रयोग किया।
- राजा रवि वर्मा द्वारा पहली बार भारतीय हिंदू धर्म के देवी देवताओं की चित्र बने। चित्रों के रूप में पहली बार भारत में मंदिरों से भगवान लोगों के घरों तक पहुँचे।
- इस शैली ने बंगाल शैली के लिए अवसर तैयार किया। जिस पर आगे चल के बंगाल शैली पनपी और आधुनिक भारतीय कला का प्रारम्भ हुआ।
कंपनी शैली का पतन
भारत में कैमरे के प्रयोग से इस शैली को बड़ा प्रभाव पड़ा। ग़ौरतलब है कि अंग्रेज अधिकारी यहाँ के स्मरण के लिए चित्र बनवाया करते थे। इस काम को अब कैमरे से करना आसान था| कंपनी शैली की कला विदेशी अधिकारीयों व पर्यटकों पर आश्रित थी| परिणामस्वरूप भारत से उनके पलायन से कंपनी शैली के कलाकारों के आश्रयदाता समाप्त हो गए|
निष्कर्ष
कम्पनी शैली अंग्रेज़ी राज्य के समय पनपी कला शैली है। मुग़ल शैली का मुग़ल साम्राज्य के साथ पतन हो गया था। एसे में राजाश्रत चित्रकारों नए अश्रयदता को खोजा और उनके अनुरूप काम किया।कमेरे के ना होने से भी इस शैली को बाल मिला।
संक्षिप्त में कहें तो कमेरे की तस्वीर के स्थानों पर कम्पनी शैली के चित्रों ने लोगों के उद्देश्य की पूर्ति की।अंततः कमेरे के अविष्कार से इस शैली का पतन भी हुआ।
फिर भी भारतीय कला में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस युग में चित्रकला आम जैन जीवन तक पहुँचीं। विदेशी चित्रकारों के आगमन से तैल चित्रण तकनीक भारत में आयी। परिणामस्वरूप राजा रवि वर्मा जैसा महान चित्रकार भारत को मिल। राजा रवि वर्मा के भारतीय कला में अमूल्य योगदानों के पश्चात्, बंगाल शैली ने भारतीय कला को एक नयी दिशा दिखाई| यहीं से भारतीय आधुनिक चित्रकला की आधारशिला रखी गयी।
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