यथार्थवादी कला आंदोलन में दोमिये के बाद प्रमुख चित्रकार गुस्तव कुर्वे (Gustave Courbet) है। पिछले लेख में दोमिये के बारे में आप पढ़ ही चुके होंगे। अगर नहीं पढ़ा है तो पढ़ लीजिए। इस लेख का लिंक हैं- आनॉर दोमिये (Honore Daumier). चलिए अब गुस्ताव कुर्बे (Gustave Courbet) के बारे में पढ़ते हैं:
परिचय
यथार्थवादी कला आंदोलन में दोमिये के बाद प्रमुख चित्रकार गुस्तव कुर्वे है। कुर्वे एक क्रांतिकारी चित्रकार रहा है। दोमिये की तरह इन्होंने भी सामान्य जनजीवन व प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण किया है। ये पहले एसे चित्रकार थे जिन्होंने काल्पनिकता के स्थान पर वास्तविक देखै देने वाले द्रशयों को चित्रं के लिए उपयुक्त मना। दोमिये व कुर्वे को यथार्थवाद कला आंदोलन का पप्रेरणता मना जाता है।
यथार्थवादी कला के प्रेरणता
मेरी नज़र में कुर्वे ही यथार्थवाद कला के प्रेरणता थे। इसके कई कारण हैं जैसे कि :
- यह चित्रकार काल्पनिक विषयों पर चित्रण नहीं करता था।
- इनका मनना था कि जो दिख रहा है उसी का चित्रण होना चाहिए।
- कुर्बे अक्सर कहा करते थे कि मुझे देवता दिखाओ तो मैं उसका चित्रण करूँगा।
- दोमिये की तरह कुर्बे ने भी तत्कालीन समाज को अपने चित्रों में दिखाया।
क्रांतिकारी चित्रकार
- जैसा कि प्रारम्भ में ही बताया जा चुका है कि कुर्बे एक क्रांतिकारी चित्रकार थे।
- कुर्बे ने पुरानी चली आ रही परम्पराओं के प्रति विद्रोही प्रवित्ति दिखायी। जबकि उन्होंने नई-नई सोच व प्रयोग को अपने चित्रों में दिखाया।
- इनका मानना था कि काल्पनिक चीजों के स्थान पर जो दिखता है वही बनाना चाहिए।
- इनकी इन्हीं क्रांतिकारी सोच व कार्य के लिए तत्कालीन कला जगत के लोगों ने इनके चित्रों की घोर आलोचना की।
- इनकी क्रांतिकारी प्रवित्ति का परिचय 1855 की इस घटना से भी लगता है। जिसमें इनके चित्रों को अंतराष्ट्रीय चित्रकला प्रदर्शनी में अस्वीकार कर दिए गया। अतः इस प्रदर्शनी के समानांतर इन्होंने अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगा दी। इस प्रदर्शनी में इन्होंने लगभग ४० चित्रों को प्रदर्शित किया।
- इनकी इस घटना से ही एकल प्रदर्शनी की अवधारणा या परम्परा की शुरुआत हुई।
गुस्तब कुर्बे की कला
- कुर्बे वास्तविक दृश्यों व चीजों को ही अपने चित्रों में स्थान देते थे।
- उन्होंने परम्परागत व रोमांसवादी नियमों को मानने से इनकार कर दिया था।
- उन्होंने वास्तविक रूप से दिख रहे दैनिक जीवन, स्थिर जीवन व प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण किया।
- उनके चित्रों में सामान्य जीवन के किसानों व स्त्री-पुरुष के दर्शन होते हैं। इनके चित्रों में यंत्र-गृह, खदानों व कारख़ानों आदि के दृश्य देखने को मिल जाएँगे। इन सब विषयों के कारण कुर्बे की कला में जड़तवाद की झलक मिलती है। इस प्रदर्शनी में कुर्बे ने “फ़्यूनरल एट ओर्ना” व एक विशाल चित्र “ द पैंटेर्स स्टूडीओ” भी प्रदर्शित किया। पेंटिंग “फ़्यूनरल एट ओर्ना” को लेकर कुर्बे कहते हैं कि मैंने इस चित्र के माध्यम से रोमांसवाद को दफ़न कर दिया है।
- अतः इन सब चित्रण के विषयों व दृश्यों को देख के इनकी कला में यथार्थवाद, घनवाद, रचणवाद व विशुद्धतवाद आदि नयी कला प्रवित्तियों के संकेत मिलते हैं।
- कुछ विद्वान कुर्बे को घनवाद का जनक भी मानते हैं।
गुस्ताव कुर्वे (Gustave Courbet) के प्रमुख चित्र
- पैंटेर्स इन थे स्टूडीओ
- स्टोन ब्रेकर्ज़
- स्नानमग्न स्त्री,
- फ़्यूनरल एट ओर्ना
निष्कर्ष
दोमिये व कुर्बे दोनों ही चित्रकारों ने रोमांसवाद आंदोलन को नकार दिया था। इन चित्रकारों ने वास्तव में आँखें क्या देखती हैं, उसे चित्रित किया। जहां दोमिये के व्यंग्यात्मक चित्रों ने तत्कालीन समाज के दर्शन कराए। वहीं दूसरी ओर एकल प्रदर्शनी के माध्यम से कुर्बे ने चित्रकारों को अपनी कला प्रदर्शित करने का एक नया मार्ग खोला। कुर्बे का खुद का मानना है कि “फ़्यूनरल एट ओर्ना” पेंटिंग के माध्यम से रोमांसवाद को दफ़न कर दिया गया। अतः स्पष्ट है की रोमांसवाद के बाद यथार्थवाद कला आंदोलन का परचम इन दोनों चित्रकारों ने लहराया।
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