बंगाल शैली के आधार स्थम्भ चित्रकारों में से एक पद्म भूषण नंदलाल बोस है। इन्होंने ना केवल भारतीय कला को पुनर्जिवित करने में सहयोग किया। बल्कि भारतीय संविधान पर भी अपनी चित्रकारी की छटा बिखेरी। बंगाल शैली के इस महान चित्रकार का योगदान अतुलनीय है। चलिए इस महान चित्रकार के व्यक्तित्व व कला के दर्शन करते हैं।
- संक्षिप्त जीवन परिचय
- अजंता की कला व नंदलाल बोस
- नंदलाल बोस व शांतिनिकेशन (कला भवन)
- कांग्रेस अधिवेशन व नंदलाल बोस
- भारतीय संविधान की मूल प्रति के चित्र
- नव बंगाल या न्यू बंगाल शैली के जनक
- नंदलाल बोस की कला
- महतवपूर्ण तथ्य
- निष्कर्ष
संक्षिप्त जीवन परिचय
नंदलाल बोस का जन्म 3 दिसंबर 1982 को बिहार के मुंगेर ज़िले में हुआ। उनके पिता पूर्णचंद्र बोस इंजीनियर(आर्किटेक्ट) थे। उनके पिताजी महाराजा दरभंगा की सियासत के मैनेजर थे। उनकी माता क्षेत्रमणि देवी एक गृहणी थीं जो कि रंगोली व गुड़िया बनतीं थी। नंदलाल बोस अपनी माँ को रंगोली व गुड़िया बनाते ध्यान से देखते थे। फलस्वरूप वे पढ़ाई में काम और चित्रकला में अधिक रुचि लेने लगे।
सन 1902 में उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा कोलकाता से पास की। आगे की पढ़ाई भी वो कोलकाता में करते रहे। अपनी आयु की बीसवें वर्ष में उनका विवाह सुधीरादेवी से कर दिया गया।
आगे की पढ़ाई वे कला में करना चाहते थे। किंतु उनके घरवालों ने उनको अनुमति नही दी। बार-बार अनुत्तीर्ण होने के कारण उन्होंने अपने घर वालों को कला की शिक्षा के लिए माना लिया। अंततः 1905 से वे कलकत्ता के गवर्न्मेंट कॉलेज ओफ़ आर्ट में अबनीन्द्ननाथ टैगोर के शिष्य बन गए। 1922 में में उन्हें शांतिनिकेतन में स्थित कला भवन का प्रधानाध्यापक बनाया गया। 16 अप्रैल 1966 को कोलकाता में इनका देहांत हुआ था।
अजंता की कला व नंदलाल बोस
नंदलाल बोस अजंता के भित्त चित्रों से काफ़ी प्रभावित थे। अबनीन्द्ननाथ टैगोर व हेवेल ने उन्हें भारतीय शैली के चित्र बनाने के लिए प्रेरित किया। वे भारतीय कला व संस्कृति को पुनर्जिवित करने वाले कलाकरों व लेखकों के समूह का हिस्सा बन गए थे। उन्होंने सन 1911 में अजंत के चित्रों की अनुकृतियाँ भी बनयी।
नंदलाल बोस व शांतिनिकेशन (कला भवन)
नदलाल बोस का शांतिनिकेतन के स्थापित विश्व भारती के कला भवन से गहरा सम्बंध रहा है। यहाँ उन्होंने शिक्षण कार्य भी किया। फिर वर्ष 1922 में शांति निकेतन के स्थापित विश्व भारती के कला भवन में प्रधानाध्यापक नियुक्त किए गए। इससे पहले ही करा भवन में उन्होंने शिक्षण कार्य किया था. शांतिनिकेतन में पदभार संभालने के बाद उन्होंने रविंद्रनाथ टैगोरे की रचनाओं के लिए चित्र बनाए। रविंदरनाथ टैगोरे के साथ अपने कई देशों की यात्राएँ भी कीं।
कांग्रेस अधिवेशन व नंदलाल बोस
नदलाल बोस से कोंग्रेस के कुछ अधिवेशनों के लिए महतवपूर्ण चित्र बनाए। वास्तव में महात्मा गांधी अपने विचारों को चित्रों के रूप में देखना चाहते थे। अतः अखिल भारतीय कांग्रेस के अधिवेशन में ग्रामीण कला और क्राफ्ट की एक कला प्रदर्शनी लगवाई गई। इन अधिवेशनों हेतु बोस ने कई पोस्टर व चित्र बनाए। इनके द्वारा गांधी जी का लाइफ साइज रेखा चित्र ख़ास प्रसिद्ध हुआ। पल्ली अधिवेशन में उन्होंने ‘किसान जीवन’ का चित्रं किया था।
कोंग्रेस के कई अधिवेशनों में से हरिपुर का अधिवेशन विशेष रूप से प्रसिद्ध है। हरीपुरा कांग्रेस अधिवेशन में बनाए गए चित्रों के माध्यम टेंपरा था। इस विशेष पोस्टर श्रृंखला में स्त्री की अध्यात्मिक शक्तियों शक्तियां भी चित्रित हुई।
भारतीय संविधान की मूल प्रति के चित्र
भारतीय संविधान की मूल प्रति को चित्रों से सजाने वाले चित्रकार नंदलाल बोस ही थे। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कहने पर नंदलाल बोस ने भारतीय संविधान की मूलप्रति को सजाया। उन्होंने संविधान को 22 चित्रों और बॉर्डर से सजाया। ये काम उन्होंने अपने छात्रों के साथ चार साल में पूरा किया। इस काम के लिए उन्हें 21 हज़ार का मेहनताना भी दिया गया।
संविधान के चित्रों की अगर बात करें तो संविधान के कवर को अजंता की भित्ति चित्र शैली से सजाया गया है। प्रारम्भ अशोक के चिह्न से की गई है। इसके बाद वाले पेज पर प्रस्तावना या उद्देशिका है। प्रस्तावना के इस पन्ने में सुनहरे बॉर्डर में घोड़ा, शेर, हाथी और बैल के चित्र बने हैं।
आज़ादी के बाद नागरिकों को सम्मानित करने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्रारम्भ हुए। इन पुरस्कारों जैसे भारत रत्न व पद्म श्री के प्रतीक भी नन्दलाल जी ने ही बनाये। जबकि 1954 में वे स्वयं भी ‘पद्मविभूषण’ से सम्मानित किये गये।
नव बंगाल या न्यू बंगाल शैली के जनक
बोस को नव नव बंगाल या न्यू बंगाल शैली के जनक के रूप में भी देखा जाता है। हालाँकि न्यू बंगाल शैली कोई अलग शैली नहीं है। यह बंगाल शैली का ही एक रूप था।
वास्तव में बंगाल शैली के अधिकतर चित्रकारों ने जलरंग की वाश तकनीक को अपनाया था। जबकि कुछ चित्रकारों ने टेम्परा तकनीक का भी प्रयोग किया। इन कुछ कलाकरों में नंदलाल बोस व क्षितिंद्रनाथ मजूमदार आदि थे। अतः टेम्परा तकनीक को अपनाए जाने के कारण बंगाल शैली को ही नव बंगाल शैली या न्यू बंगाल शैली कहा गया।
नंदलाल बोस की कला
- उनकी कला अजंता से बहुत प्रभावित थी।
- अबनि बाबू के शिष्य होने के नाते उनकी कला में भी भारतीयता के दर्शन होते हैं।
- उन्होंने अपनी कल्पना शक्ति से भारतीय देवी, देवताओं तथा प्राचीन ऐतिहासिक घटनाओं के चित्र बनाये।
- इन्होंने स्वतन्त्रता आन्दोलन से सम्बन्धित चित्र भी बनाए।
- ये चित्र आज भारतीय इतिहास की अमूल्य धरोहर साबित हो रहे हैं। इन चित्रों में दंडी यात्रा तो बहुत ही प्रसिद्ध है।
- संविधान की प्रति को सजा के उन्होंने इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए खुद को अमर कर लिया।
- मुख्यतः बंगाल शैली के कलाकरों को जलरंग की वाश तकनीक जाना जाता था।
- किंतु इन्होंने टैम्परा तकनीक का भी बखूबी इस्तेमाल किया।
महतवपूर्ण तथ्य
- नंदलाल बोस नव बंगाल या न्यू बंगाल शैली का जनक भी माना जाता है।
- नेशनल गैलरी ओफ़ मॉडर्न आर्ट नई दिल्ली में उनकी 7000 चित्र संग्रहित हैं।
- इन चित्रों में लीनोकट में बना दंडी यात्रा का चित्र भी शामिल है।
- 1976 में भारतीय पुरातत्व संग्रह और भारत सरकार के संस्कृति विभाग ने उनके काम को ‘बहुमूल्य कला निधि’ घोषित किया।
- इन्होंने तीन पुस्तकें भी लिखीं—रूपावली, शिल्पकथा और शिल्प चर्चा।
- ‘इण्डियन सोसायटी ऑफ़ ओरिएण्टल आर्ट्सकी पहली प्रदर्शिनी में उन्हें 500 रु0 का पुरस्कार मिला।
- इस पुरस्कार राशि से उन्होंने देश का भ्रमण में किया।
- उन्होंने संविधान की मूल पांडुलिपि को सजाया कराया था।
- 1956 में उन्हें ललितकला अकादमी का फ़ेलो चुना गया।
- भारत सरकार ने वर्ष 1954 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया।
- वर्ष 1965 में उन्हें टैगोर जन्म शादी पदक दिया गया।
निष्कर्ष
- आधुनिक आज़ाद भारत के महत्वपूर्ण समय में आपका योगदान अतुलनीय है।
- आज़ादी के बाद राष्ट्रीयता की लहर में आपकी कला भी बही।
- अतः अजंता जैसी भारतीय शैलियों से प्रभावित होकर उन्होंने भारतीय शैली ही को आगे बढ़ाया।
- अवनि बाबू के बाद भारतीय कला शैली को दिशा देखने का काम नंदलाल ने बखूबी किया।
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