20वीं सदी के आधुनिक कला आंदोलन को एक नयी दिशा देने वाले कलाकार अवनिंद्रानाथ ठाकुर (Abanindranath Tagore) हैं। अवनींद्रनाथ टैगोर (Abanindranath Tagore) बंगाल स्कूल के मर्गदर्शक के रूम में उभरे।
उस समय भारतीय कला को एक नयी ऊर्जा व दिशा की ज़रूरत थी। इस ज़रूरत को ई वी हेवेल के साथ में अवनींद्रनाथ टैगोर (Abanindranath Tagore) ने समझा।अतः अवनी बाबू ने बंगाल शैली की स्थापना की।
चलिए इस लेख में अवनी बाबू के कला यात्रा के साथ-साथ इनके व्यक्तिगत जीवन पर भी एक नज़र डालते हैं:
- प्रारम्भिक जीवन
- अवनींद्रनाथ टैगोर (Abanindranath Tagore) की कला यात्रा
- अवनी बाबू एक लेखक के रूप में
- ई वी हेवेल और अवनींद्रनाथ टैगोर
- इंडीयन सॉसाययटी ओफ़ ऑरीएंटल आर्ट
- बंगाल शैली के संस्थापक
- प्रमुख कृतियाँ
- अवनींद्रनाथ टैगोर के प्रमुख शिष्य
- अवनींद्रनाथ टैगोर व रविंदरनाथ टैगोर
- निष्कर्ष
प्रारम्भिक जीवन
अवनींद्रनाथ टैगोर का जन्म बंगाल के जोडसांको नामक स्थान पर 7 अगस्त 1871 में जन्माष्टमी के दिन हुआ था। उनके दादा का नाम गिरिन्द्रनाथ टैगोर था। इनके बड़े भाई गगेंद्रनाथ टैगोर थे। इनके बड़े भाई गगेंद्रनाथ व दादा गिरिन्द्रनाथ टैगोर दोनों चित्रकार थे। अवनी बाबू गुरु रविंदरनाथ टेगौर के भतीजे थे।
1880 में उन्होंने संस्कृत कॉलेज में अध्ययन के दौरान कला सीखी। 1890 में अबनि बाबू ने कलकत्ता स्कूल ओफ आर्ट एंड क्राफ़्ट में प्रवेश लिया। जहां अपने पेस्टेल कलर ओ घिलरडी (O Ghilardi) से सीखे तथा ओयल कलर (तैलिय चित्रण) सी पामर (C Palmer) से सीखा। ये दोनों यूरोपीयन चित्रकार उस कॉलेज में शिक्षक थे। अवनींद्रनाथ टैगोर ने सुहासिनी देवी से 1889 में विवाह किया।
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अवनींद्रनाथ टैगोर (Abanindranath Tagore) की कला यात्रा
अवनींद्रनाथ टैगोर चित्रकार के साथ साथ एक लिखक भी थे। चार्ल्स पामर के स्टूडीओ में इन्होंने तैल चित्रण का अध्यं किया। लगभग ३ से ४ साल तक पामर के स्टूडीओ में काम कर के उन्होंने तैल चित्रण में महारत हासिल की।
अवनी बाबू भारतीय परम्परागत चित्र शैली में आस्था रखते थे। उनके अनुसार यूरोपियन शैली भौतिकवादी शैली है। अतः उन्होंने भारतीय परम्परागत कला शैलियों की ओर लोटने पर ज़ोर दिया। 1902 में दो जापानी चित्रकार यकोहम ताइक्वान व हिदिशा भारत आए। इनके साथ अबनि बाबू दो साल तक रहे व इनसे जापानी चित्रकला सीखी।
कलकत्ता स्कूल ओफ़ आर्ट के प्रधानाचार्य अवनींद्रनाथ टैगोर से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने अवनी बाबू को उप-प्राचार्य के पद का प्रस्ताव दिया। आगे चल के अवनी बाबू ने कई चित्र शैलियों पर काम किया। वे मुग़ल शैली, राजपूत शैली, अजंता की चित्रकला से तो प्रभावित तो थे ही। इसके अलावा वे यूरोपीयन कला, चीन, जापान व ईरानी कला के भी ज्ञाता थे। इन सभी शैलियों का सुंदर समन्वय उनकी कला में देखने को मिलता है।
उनके चित्रों की प्रदर्शनी सन १९१३ में लंदन व पेरिस में लगायी गयी। इसके उपरांत १९१९ में उन्होंने जापान में अपनी कला की प्रदर्शनी की।
अवनी बाबू एक लेखक के रूप में
अवनी बाबू केवल एक अच्छे चित्रकार ही नहीं थे बल्कि एक अच्छे लेखक भी थे। बंगाली बाल साहित्य में उनका नाम प्रख्यात लेखकों में है। उन्होंने बच्चों के लिए कई कहानियाँ भी लिखीं। वे ‘अबन ठाकुर’ नाम से प्रसिद्ध थे। उनकी कुछ किताबें बंगला बाल साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। इन किताबों में राजकहानी, बूडो अंगला, नलक खिरेर पुतुल आदि प्रमुख हैं।
ई वी हेवेल और अवनींद्रनाथ टैगोर
- ई बी हेवेल एक प्रभावशाली अंग्रेज कला प्रशासक, कला इतिहासकार व लेखक थे।
- उन्होंने भारतीय कला व स्थापत्य के ऊपर असंख्य किताबें लिखीं।
- 1884 में वे मद्रास कला विद्यालय के प्रधानाचार्य बने।
- उन्होंने सारी दुनिया का ध्यान भारतीय कला की ओर आकर्षित किया।
- सन 1896 में वे गवर्न्मेंट स्कूल ओफ़ आर्ट कलकत्ता के प्रिन्सिपल बने। यहाँ उनके सम्पर्क में अबनिंदरनाथ टैगोरे आए।
- दोनों ने मिल के भारतीय कला क्षेत्र में एक नयी विचारधारा को जन्म दिया।
- हेवेल् के विचारों से प्रेरित होकर अबनिंदरनाथ ने मुग़ल व अन्य भारतीय शैलियों का अनुसरण करना प्रारम्भ किया।
- हेवेल के साथ उन्होंने कलकत्ता स्कूल ओफ़ आर्ट में कला शिक्षा को पुनर्जीवित किया।
- दोनो ने मिल के नए सिरे से बंगाल शैली को विकसित करने का काम किया।
- इस काम में उनके बड़े भाई गगनेन्द्रनाथ टैगोर ने भी उनका साथ दिया।
बंगाल शैली के संस्थापक
उन्होंने ने भारतीय कला में स्वदेशी मूल्यों को मिलने पर ज़ोर दिया। उन्होंने मुग़ल, राजपूत, व अजंता जैसी स्वदेशी शैलियों का अध्ययन किया। उल्लेखित है कि यूरोपियन शैली में भी उन्हें महारत हासिल कर ली थी।अतः अबनि बाबू की कला पर यूरोपीय, मुग़ल, ईरानी, चीनी, जापानी, राजपूत तथा अजंता का प्रभाव था। इन्हीं सब शैलियों को भारतीयता में पिरो के उन्होंने जो एक नयी कला शैली विकसित की। इसी नयी शैली को ठाकुर शैली, या बंगाल शैली या पुनरुत्थान की कला कहा गया।
इंडीयन सॉसाययटी ओफ़ ऑरीएंटल आर्ट
1905 में अबनि बाबू कलकत्ता कला विद्यालय के प्राचार्य बने। यहाँ से उनके शिष्य तैयार हुए जो देश के विभिन्न भागों में फैले। इसी वर्ष उन्होंने इण्डीयन सॉसाययटी ओफ़ ऑरीएंटल आर्ट नामक जर्नल शुरू किया। उनके जर्नल के माध्यम से बंगाल शैली का प्रचार पूरे देश में होने लगा।
अख़िकार, बंगाल में में जन्मी कला शैली या भारतीय कला में भारतीयता की भावना लिए ये पुनरुत्थान की कला पूरे देश में फैल गयी। इस कला आंदोलन ने देश की कला को एक नयी दिशा दी जिसकी इस समय बहुत आवश्यकता थी।
प्रमुख की कृतियाँ
- अरेबियन नाइट्स (यह चित्र शृंखला के रूप में उनकी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। इसको उन्होंने 1930 में बनाया था।)
- भारत माता
- शाहजहाँ की मृत्यु
- बुद्ध जन्म
- बुद्ध और सुजाता
- ताजमहल का निर्माण
- मेरी माँ
- कच और देवयानी
- स्वप्न लोक में रविंद्र
भारत माता
शाहजहाँ की मृत्यु
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अवनींद्रनाथ टैगोर के प्रमुख शिष्य
अबनि बाबू के कलकत्ता कला विद्यालय का प्राचार्य बनने से उनके कई शिष्य तैयार हुए। जिन्होंने बंगाल शैली को विकसित करने में अपना-अपना योगदान दिया। इन प्रमुख शिष्यों में नंदलाल बोस, कालिपद घोषाल, क्षितिन्द्रनाथ मजुमदार, सुरेन्द्रनाथ गांगुली, असित कुमार हलधर, शारदा उकील, समरेन्द्रनाथ गुप्ता, मनीषी डे, मुकुल डे, के. वेंकटप्पा, जामिनी रॉय और रानाडा वकील आदि प्रमुख थे।
अवनींद्रनाथ टैगोर व रविंदरनाथ टैगोर
अवनींद्रनाथ टैगोर विश्व प्रसिद्ध कवि रविंद्रनाथ टैगोर के भतीजे थे। ज्ञात हो कि रविंद्रनाथ टैगोर को अंतरष्ट्रिय ख्याति मिलने से पहले ही अवनी बाबू यूरोप में प्रतिष्ठित चित्रकार के रूप में पहचान बना चुके थे। अवनी व उनके बड़े भाई गगनेन्द्रनाथ के ब्रिटिश एवं यूरोपीय दोस्तों ने ही रविंद्रनाथ टैगोर को उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘गीतांजलि’ को अंग्रेज़ी में प्रकाशित करने को कहा था।
निष्कर्ष
भारत में मुग़ल काल के पतन के पश्चात ब्रिटिश हुकूमत का राज रहा। मुग़ल काल के बाद, पहाड़ी शैली, पाल शैली, राजपूत व कम्पनी शैली जैसी शैलियाँ विकसित हयीं। वहीं दूसरी ओर भारत अब आज़ादी की ओर बाद रहा था। देश में स्वदेशी मूल्यों का चलन को लोगों ने अपने दिल में जगह दी। इस स्थिति में कला में भी ये भावना स्वभाविक थी। अवनींद्रनाथ टैगोर ने स्वदेशी मूल्यों को कला में ना केवल जगह दी, अपितु भारत की पारम्परिक कला के समन्वय से एक नयी कला शैली विकसित की। यही नयी कला शैली बंगाल स्कूल या बंगाल शैली कहलाई। तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रख के अगर देखा जाय तो यह एक महत्वपूर्ण योगदान था। कला में इस योगदान ने आधुनिक भारतीय कला की नींव रखी जिस पर आगे चल कर समकालीन कलाकारों ने इसे नए आयाम दिए।
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