स्वच्छंदतावाद कला आंदोलन में (The Raft of The Medusa) मेदुसा का बेड़ा चित्र का बहुत महत्व है। जेरिकल्त द्वारा निर्मित मेदुसा का बेड़ा (The Raft of The Medusa) एक विश्व प्रसिद्ध कला कृति है। वैसे तो जेरिकल्त ने और भी चित्र बनाए मगर मेदुसा का बेड़ा (The Raft of The Medusa) चित्र का अपना महत्व है। चलिए जानते है इसके बनाने की क्या कहानी व तैयारी रही थी।
चित्र के बारे में
- मेडुसा की बेड़ा (The Raft of The Medusa), थियोडोर गेरिकॉल्ट (Theodore Gericault) द्वारा 1819 में रचित कृति है।
- यह एक विशाल पेंटिंग (चित्र) है जिसकी लम्बाई 23 फ़ीट लम्बी व 16 फ़ीट ऊँची है।
- इसमें एक जहाज़ की भीषण तबाही से बचे लोगों को एक बेडे पर दिखाया गया है।
- इस बेडे पर लोग भूख से मर रहे थे।
- गेरिकॉल्ट ने इस चित्र के लिए कोई प्राचीन और महान विषय नहीं चुना।
- बल्कि हाल ही में घटित एक भीषण हादसे को अपने विशाल चित्र में उतारा।
- इस भीषण हादसे की त्रासदी व भूखे प्यासे लोग इस चित्र में दिखाए गए।
- चित्र में अपनों की मौत से दुखी लोग थे जो अपनों की लाशों को पकड़े हुए।
- कटी व सड़ती हुई लाशें व लाशों के टुकड़े को इस चित्र में बनाया गया।
- वास्तव में इस कष्टप्रद विवरण को चित्र में उतार कर जेरिकल्त ने दर्शकों को चकित कर दिया।
- शुरुआती समय में इस चित्र को फ़्रान्स की सरकार से कोई समर्थन नही मिला।
- कला आलोचकों ने भी इसके विषय में कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नही दी।
- अतः इन सब बातों से खिन्न हो कर जेरिकल्त यह चित्र ब्रिटेन ले गया।
- ब्रिटेन में इस चित्र को सनसनीख़ेज़ सफलता मिली। हालाँकि जेरिकल्त की मृत्यु के पश्चात फ़्रान्स में इसको पुनः महत्व दिया जाने लगा। अंततः इस चित्र को फ़्रान्स लाया गया।
इस चित्र की वास्तविक कहानी (The Story Real of The Raft of The Medusa)
यह विशाल पेंटिंग 1816 के फ्रांसीसी रॉयल नेवी के जहाज मेडुसा के हादसे के बाद हुई घटना को दर्शाती है। यह जहाज़ सेनेगल के तट से निकला था। जीवनरक्षक नौकाओं की कमी के कारण, लगभग 150 जीवित बचे लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए एक बेड़ा बनाया था। इसी बेडे सवार लोगों के जीवन 13 दिन के संघर्ष की कहानी चित्र में एक दृश्य के रूप में दिखायी गयी है।
फिर 13-दिन के भयानक भुखमरी से कई लोगों ने अपनी जान गवाँ दी। जीवन को बचाने की जद्दो-जेहाद ने लोगों को एक दूसरे को मारने व एक दूसरे को खाने के लिए मजबूर कर दिया था। जब उन्हें समुद्र में बचाया गया, तब केवल कुछ मुट्ठी भर ही लोग रह गए थे।
राजनैतिक द्रष्टिकोण
यह चित्र कहीं ना कहीं उच्च दर्जे के समाज की पाल खोलता है। इस समाज का एक बड़ा हिस्सा राजनैतिक वर्ग से भी सम्बन्ध रखता है। अतः राजनैतिक दृष्टिकोण से इस चित्र को महत्व मिलना सम्भव नही था। वहीं दूसरी ओर जहाज़ की तबाही को फ़्रांस में निंदनीय राजनीतिक के तौर पर देखा जा रहा था। इस जहाज़ का कप्तान अयोग्य था जिसने सिफ़ारिश से पद हासिल किया था। अतः वह खुद को और वरिष्ठ अधिकारियों को बचा ले गया। जबकि निचले दर्जे के लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया। इसलिए गैरीकॉल्ट के इस चित्र और इससे जुड़े लोगों को सरकार द्वारा ज़्यादा पसंद नही किया गया। अतः जेरिकल्त के जीते-जी इस चित्र को फ़्रान्स में वो महत्व नही मिला जो मिलना चाहिए था।
चित्र की विषय वस्तु की समीक्षा
साहसिक व समकालीन घटनाओं के विषय वस्तु के लिहाज़ से ये अपने समय का एक बहुत ही महत्व पूर्ण चित्र है। मुझे नही लगता कि इससे पहले किसी चित्रकार ने इस प्रकार के महाकाव्य-वीरतापूर्ण त्रासदी विषय को अपना चित्रण कि विषय बनाया होगा। इसके चित्र का नाटकीय रेखांकन व रंगों की तान इसे एक अलग पहचन देती है। अपने विषय व चित्रांकन के दम पर यह चित्र अपने समकालीन चित्रों से कहीं आगे निकल जाता है।
वैसे तो इस विषय के चित्र के कई रेखा चित्र जेरिकल्त ने बनाए थे। किंतु इस चित्र को ही उसने पूरा किया। इसमें एक ग़ुलाम मदद की उम्मीद से एक लाल कपड़ा लहरा रहा है। इस व्यक्ति को एक लीडर के रूप में भी दिखाया गया है। चित्र के दायीं ओर दूर क्षितिज पर एक जहाज़ दिखाई दे रहा है।यह जहाज़ इन लोगों की मदद के लिए एक उम्मीद के रूप में दिखाया गया है।
वहीं चित्र के बायें हिस्से में विक्षिप्त हालत में लाश पड़ी है। पास ही बग़ल में एक बुज़ुर्ग एक जवान लड़के की लाश को ले कर बेठा है। यह बुज़ुर्ग शायद उस जवान लड़के का पिता है। दायीं ओर सबसे आगे एक ओर लाश पड़ी दिखायी गयी है। जो बचे हुए लोग हैं उनके चेहरे के भावों से 13 दिन की त्रासदी की झलक साफ़ दिख रही है। भूख, प्यास, अपनों के चले जाने का ग़म, इस हादसे की पीड़ा इनके चेरों में स्पष्ट झलक रही है।ख़ास तौर पर पिता के चेहरे से उसके पुत्र के जाने की पीड़ा को सुंदर रूप से दिखाया गया है। लाशों के टुकड़े, कमजोर बचे हुए व हिम्मत हारे हुए लोग इस भया-वाह घटना की गवाही देते हैं। बेडे को आधा पानी में डूबा दिखाया गया है।
चित्र बनाने की तैयारी
इस चित्र के निर्माण से पहले जेरिकल्त ने बहुत तैयारी की। वह इस घटना के पीड़ित लोगों से मिला। इसके अलावा इनकी मानो-भावनाओं को समझने के लिए उसने पागलों व मनोरोगियों का भी अध्ययन किया। उनके लिए लाशों व लाशों के सड़ने की प्रक्रिया व उसके प्रभावों को समझना था। अतः इस काम के लिए जेरिकल्त लाश व लाशों के टुकड़ों को अपने स्टूडियो में ले आया था।
जेरिकल्त ने लकड़ियों से एक वैसा बेड़ा भी निर्मित करवाया। उसने घटना के द्रश्यांकन के लिए हू व हू वैसा है घटना क्रम अपने स्टूडीओ में बनाने का प्रयास किया। इन सब के बाद उसने इस घटना के अलग अलग द्रशयों के रेखा चित्र बनाए। किंतु उनमें से एक को ही उसने चित्र बनाने कि लिए चुना। उसके इस प्रयासों से कहीं ना कहीं यथार्थवाद के दस्तक के संकेत हमें मिलते हैं। इसी लिए कुछ लोग कहते हैं कि रोमैंटिसिज़म ने यथार्थवाद की भूमिका तैयार की है।
मेदुसा के बेड़ा चित्र को स्वर्ण पदक
- मेदुसा का बेड़ा एक नाटकीय, सावधानीपूर्वक निर्मित चित्र संयोजन है।
- 1819 में गेरिकॉल्ट ने लौवर में समकालीन फ्रांसीसी कला की वार्षिक प्रदर्शनी, सैलून में इस चित्र को प्रदर्शित किया था।
- वहाँ इसे स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया।
- लेकिन कई आलोचकों ने इसके गंभीर विषय और भयानक यथार्थवाद की निंदा की।
- मेडुसा के बेड़ा के प्रति आलोचकों के प्रतिक्रिया से वे निराश हुए। गेरिकॉल्ट 1820 में पेंटिंग को इंग्लैंड ले गए।
- जबकि इंग्लंड में इसे सनसनीखेज सफलता प्राप्त हुई।
- कहते हैं ना कि जीते-जी कलाकार का इतना महत्व नही होता जितना उसके मारने के बाद।
- अतः 1824 में चित्रकार की मृत्यु के बाद, लौवर के निदेशक ने इस चित्र को महत्व दिया।
- उन्होंने इस चित्र को लौवर संग्रहालय के लिए खरीद लिया।
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Bahut sundar vivran .apke shavd aur explanation ka tareeka abhibhoot kr deta hai .. Thanks..
Apka Abhaar.