नव-प्रभाववाद (Neo-Impressionism) किया कला प्रभाववाद कला का ही विस्तारित रूप है। इसको बिंदुवाद, व विभाजनवाद के नाम से भी जाना जाता है। पिछले लेख- प्रभाव वाद की कला व क्लोड मोने में प्रभाववाद के जन्म के बारे में बताया जा चुका है। प्रभाववाद की उत्पत्ति के बाद ही नव-प्रभाववाद (Neo-Impressionism) का उदय हुआ। अतः नव-प्रभाववाद से पूर्व प्रभाव वाद व क्लोड मोने के बारे में ज़रूर जां लें।
(अवश्य पढ़े: प्रभाववाद की कला )
चलिए एक नज़र डाल लेते हैं जिनके आधार पर क्लोड मोने (Claude Monet) की कला जीवन के बारे में हम अध्ययन करेंगें:
- परिचय
- प्रष्ठ-भूमि
- स्थापक चित्रकार
- तकनीक
- नव-प्रभाववाद (Neo-Impressionism) के प्रमुख चित्रकार
- निष्कर्ष
परिचय
नव-प्रभाववाद (Neo-Impressionism) की कला प्रभाववाद कला का ही विस्तारित रूप है। इसको बिंदुवाद, व विभाजनवाद के नाम से भी जाना जाता है। नव-प्रभाववाद (Neo-Impressionism) की कला आंदोलन के जनक जॉर्ज सोरा (George Seurat) हैं। नव-प्रभाववाद (Neo-Impressionism) की कला जॉर्ज सोरा (George Seurat) की द बथेर्स (The Bathers) से शुरू व अ संडे आफ़्टरनून ऑन द आइसलैंड ओफ़ ला ग्रंडे जत्ते (A Sunday Afternoon on the Island of La Grande Jatte) तक काफ़ी प्रसिद्ध रहा।
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प्रष्ठ-भूमि (Background)
- प्रभाववाद की कला के उदय के बाद नव-प्रभाववाद की कला का उदय हुआ। जैसा कि पिछले लेखों/विडीओज़ में बताया जा चुका है कि प्रभाववाद का उदय कैसे हुआ।
- प्रभाववाद ने अपने आप का भी विकास व विस्तार भी किया। नव-प्रभाववाद उसी के एक रूप है।
- आइज़क न्यूटन (Isaac Newton) ने 1672 में बारह खंडों का वर्ण चक्र (Color Wheel) विकसित किया था।
- इसके बाद आइज़क न्यूटन (Isaac Newton) के रंगों के विश्लेषण के आधार पर अन्य विद्वानों की कई किताबें प्रकाशित हुईं।
- ये सारी किताबें रंगों सिद्धांत के वैज्ञानिक व सौंदर्यशास्त्रीय अध्ययन पर आधारित थीं।
- इन सभी किताबों का सोरा ने गहन अध्ययन किया। गहन अध्ययन के बाद अपनी एक नयी तकनीक विकसित की। इस नयी तकनीक को सोरा ने सेप्रेशन ओफ़ कलर्स या डिविज़निलिस्म नाम दिया। (1)
- इस तकनीक में प्रकाश व रंग को ज़्यादा महत्व था। जबकि रंगों में अन्य द्रव को मिलने को अलग कर दिया गया था। इस लिए सोरा ने इसे क़्रोमोल्युनिनेरिज्म भी कहना उचित समझा।
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स्थापक चित्रकार (Founder Artist)
- नव-प्रभाववाद की कला का संस्थापक चित्रकार जॉर्ज सोरा (George Seurat) को माना जाता है।
- नव-प्रभाववाद की कला वर्ष 1884 में सोरा की पेंटिंग द बाथर्स से शुरू हुई।
- सोरा के दूसरी पेंटिंग (A Sunday Afternoon on the Island of La Grande Jatte) अ संडे आफ़्टरनून ऑन द आइसलैंड ओफ़ ला ग्रंडे जत्ते पेंटिंग में विकसित होते हुए 1906 तक नव-प्रभाववाद की कला प्रचलित रही।
- सोरा की पेंटिंग द बाथर्स एक ऐतिहासिक चित्र था। यह चित्र पन्द्रहवीं शताब्दी के फ़्रेंच शास्त्रीयतावादी चित्रकार निकोलस पूसिन व समकालीन प्रभाववादी शैली से प्रभावित था।
- ये पेंटिंग नगरीय जीवन का चित्रण थी। जिसमें शांत नदी के किनारे आकृतियाँ, कपड़ों के ढेर, भवनों, पेड़ों व दीवारों से घिरा वातावरण है।
- सोरा के दोनों दी चित्र उसकी तकनीक के सटीक उदाहरण हैं। इसी वजह से नव-प्रभाववाद की कला का संस्थापक चित्रकार जॉर्ज सोरा (George Seurat) को माना जाता है।
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तकनीक या नव प्रभाववाद की विशेषताएँ
- नव प्रभाववाद की कला तकनीक में विशुद्ध प्राथमिक रंगों को बिना मिश्रण के छोटे छोटे बिंदुओं में सीधे कैन्वस पर लगाए गए।
- सुनियोजित तरीक़े से कैन्वस पर ये बिंदु तूलिका(ब्रश) के माध्यम से लगाए गए।
- इस प्रकार बने चित्र या पेंटिंग को एक निश्चित दूरी से देखने पर अलग ही रंग सायोजन नज़र आता है।
- दूरी से देखने पर ये रंग अपने आप ही आँखों में मिश्रित हो कर अपने नए रंग का प्रभाव छोड़ते हैं।
- जैसे कि अगर लाल व पीले रंग के बिंदु एक साथ या आस पास हों तो दूर से नारंगी रंग का इफ़ेक्ट देते हैं।
- इसी प्रकार नीले व पीले रंग के बिंदुओं से हरे रंग का आभास होता है।
- दूसरी ओर इस प्रकार की पेंटिंग के रंग में चमक व तीव्रता भी बनी रहती है।
- इसी लिए इस तकनीक को पोईंटालिस्म (बिंदुवाद) कहा गया।
- इस कला में समकालीन दृश्यों के साथ-साथ समकालीन वातावरण का चित्रण हुआ।
- आकारों को ज्योमितिय व ठोस आकर में दिखाया गया है। स्टूडीओ में बेठ के ये पेंटिंग बनयी गयीं।
- रंगों को शुद्ध रूप में छोटी छोटी बिंदुओं में लगाया गया है।
नव-प्रभाववाद के प्रमुख चित्रकार (Main Artists of Neo-impressionism)
- जॉर्ज सोरा (George Seurat)
- पॉल विक्टर जुलेस सिग्ने (Paul Victor Jules Signae)
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निष्कर्ष
नव प्रभाववाद की कला, प्रभाववाद की कला का ही विकसित रूप है। नव प्रभाववाद की कला की कला में टकिक के रूप में कैन्वस पर रंगों को छोटी-छोटी बिंदुओं में लगाया गया है। ये बिंदुएँ आँखों में ही मिश्रित हो कर अद्भुत प्रभाव देती हैं। इतिहासिक रूप से नव प्रभाववाद की कला आधुनिक कला का एक महतवपूर्ण मोड़ रहा है। हम सब को नव प्रभाववाद की कला ने कला के नए नियम व तकनीक से परिचय करवाया। निश्चित रूप से इस कला आंदोलन ने कला को एक नयी राह दी।
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