अमृता शेर-गिल (Amrita Sher-Gil) का नाम आज भारतीय कला जगत में सबसे चर्चित चित्रकारों में से एक है। जहां एक ओर उनकी कला की बात होती है। वहीं दूसरी ओर उनके व्यक्तिगत जीवन की बेबाकी के लिए भी वे जानी जातीं हैं।
ये उन अगुवा चित्रकारों में से हैं जिन्होंने भारतीय आधुनिक कला आंदोलन को प्रभावित किया। बहुत ही कम समय में कला की ऊँचाइयाँ छू लेने वाली वे भारत की एक मात्र महिला चित्रकार हैं। इससे साबित होता है कि उनकी कला में कुछ तो बात थी जिसने उन्हें कला इतिहास में अमर बना दिया।
प्रारम्भिक जीवन
अमृता शेरगिल (Amrita Sher-Gil) का जन्म 30 जनवरी, 1913 को हंगरी के बुडापेस्ट में हुआ था। उनके पिता नाम उमराव सिंह शेर-गिल मजीठिया थे। वे एक फारसी और संस्कृत के विद्वान थे। जबकि उनकी माँ, मैरी एंटोनियेट गोट्समैन, एक हंगेरियन गायिका थीं। अमृता अपनी छोटी बहन इंदिरा सुंदरम के साथ पली-बढ़ी। उसने अपना प्रारंभिक बचपन हंगरी में बिताया।
बचपन से ही अमृता का रुझान चित्रकला के प्रति विकसित होने लगा था। पाँच वर्ष से ही अमृता ने पेंटिंग करना शुरू कर दिया था। वर्ष 1921 में आर्थिक तंगी के कारण उनका परिवार हंगरी से शिमला के खूबसूरत हिल स्टेशन में शिफ्ट हो गया। शिमला आने के बाद, नौ साल की अमृता ने पियानो सीखना शुरू किया। यह युवा लड़की अपने क्रांतिकारी विचारों के लिए भी जानी जातीं थी। कहा जाता है कि नास्तिकता के चलते उन्हें अपने स्कूल से निकाल दिया गया था। 1941 में, वह लाहौर (अविभाजित भारत) चली गईं, जहाँ 28 वर्ष की कम आयु में 5 दिसम्बर 1941 में उनकी मृत्यु हुई।
कला शिक्षा
आठ साल की उम्र से ही अमृता ने चित्रकला की शिक्षा शुरू कर दी थीं। जब अमृता 16 साल की थीं उस समय उसकी माँ उसे पेरिस ले गई। पेरिस में, अमृता ने पियरे वैलेंट (Pierre Vaillent) और लुसिएन साइमन (Lucien Simon) से कला की शिक्षा ली। बाद में उन्होंने लुसिएन साइमन के मार्ग दर्शन में काम करना शुरू किया। उस समय के उनके कामों को लोगों ने बहुत सराहा। पेरिस में रहने के दौरान, वह पॉल सेज़ेन (Paul Cezanne) और पॉल गाउगिन (Paul Gauguin) जैसे यूरोपीय चित्रकारों से बहुत प्रभावित थीं।
व्यक्तिवत
अमृता शेरगिल (Amrita Sher-Gil) का व्यक्तित्व बहुत ही प्रभावशाली था। वे एक आकर्षक व सुंदर महिला थीं। हालाँकि उनकी आँखों में हल्का स भेंगापन था। मगर ये हल्का सा दोष उनकी सुंदरता व प्रतिभा के आगे कुछ भी नहीं। वे खुले स्वभाव की लापरवाह महिला थीं। पेंटिंग के अलावा वे पियानो बजाने में भी पारंगत थीं। उनको पढ़ने का का भी शौक़ था।
कला प्रतिभा की धनी अमृता पाँच भाषाओं में पारंगत थी। उनके बारे में कहा जाता है कि वे जहां चलीं जाएँ वहाँ उनको देख के सन्नाटा झा जाता था। उनके कई पुरुष व महिलाएँ मित्र रहे। जिनके उन्होइ व्यक्ति चित्र भी बनाए।
चित्रण के विषय
अमृता ने अपने नौकरों और नौकरानियों को चित्रित करना शुरू किया। आगे चल के अपने दोस्तों के भी कई व्यक्ति चित्र उन्होंने खूब बनाए। इसके अलावा उन्होंने खुद के आत्म चित्र की ऋंखला भी बनयी। उनकी बनयी गयी पेंटिंग यंग गर्ल भी काफ़ी चर्चित रही।
हिंदुस्तान आने के बाद उन्होंने भारतीय जनजीवन को भी अपने चित्रों में दर्शाया। यहाँ की परम्परा, ग्रामीण परिवेश व वंचित लोगों ने उनके चित्रण के विषयों को काफ़ी प्रभावित किया।
स्वदेश में बनीं उनकी कृतियों का बाद के वर्षों में भारतीय कला पर जबरदस्त प्रभाव पड़ा। इस दौरान उनके चित्रों में, ‘सिएस्ता’, ‘विलेज सीन’ और ‘इन द लेडीज’ एनक्लोजर’ सबसे अच्छे पेंटिंग मानी जातीं हैं। ये पेंटिंग सभी देशों में वंचितों और महिलाओं की खराब स्थिति का देखतीं हैं। वैसे तो उनके चित्रों को आलोचकों बहुत सराहा, लेकिन उन्हें शायद ही कभी खरीदार मिले। उनके द्वारा निर्मित ‘द ब्राइड’, ‘ताहितियन’, ‘रेड ब्रिक हाउस’ और ‘हिल सीन’ जैसी शानदार पेंटिंग शामिल हैं।
भारत प्रवास
अमृता शेरगिल (Amrita Sher-Gil) वर्ष 1934 में भारत लौटीं और इसे अपनी कर्मभूमि बनाया। भारत लौट कर वे अपने पुराने ख़ानदानी घर गोरखपुर में आ के रहने लगीं।
1937 में, वे दक्षिणी भारत की यात्रा पर निकलीं। यात्रा के दौरान कई ग्रामीणों और वंचित लोगों की स्थिति ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। यह प्रभाव उनके चित्रों में आगे दिखाई देने लगा।
जिसके परिणामस्वरूम उन्होंने ‘ब्रह्मचारी’, ‘ब्राइड्स टॉयलेट’ और ‘साउथ इंडियन विलेजर्स गोइंग टू मार्केट’ जैसे महान चित्रों को बनाया।
1938 में वो फिर से हंगरी लौटीं। जहां उन्होंने अपने चहेरे भाई विक्टर इगन (Victor Egan) से शादी की। एक साल वहाँ रहने के बाद वे पुनः भारत लौटे। 1941 में वे लाहौर चलीं गयीं थीं। वहीं उनके गर्भपात के असफल होने से उनका देहांत हो गया था।
कला शैली
- कला-शिक्षा पेरिस में लेने के कारण स्वाभाविक रूप से उनकी तकनीक यूरोपीय थी।
- यूरोपीय शैली के दर्शन उनके प्रारम्भिक चित्रों में होते भी हैं।
- यूरोपीय तैल चित्रण तकनीक में वे माहिर थीं।
- रत लोट कर उन्होंने यूरोपीय तैल चित्रण तकनीक में भारतीय परिवेश को मिलाया।
- वे अजंता व एलोरा की कला से भी बहुत प्रभावित थीं।
- उन्होंने भारतीय परंपरा की आत्मा को समझने का प्रयास किया।
- उन्होंने भारतीय कलाओं को भी जानने का प्रयास किया।
- भारतीय परम्परा, भारतीय विषय को उन्होंने अपनी यूरोपीय तैल चित्रण तकनीक मिलाया।
- उनके इस मिश्रण से उनकी एक नयी कला शैली का जन्म हुआ।
- यही उनकी अपनी शैली थी। जिसने उनको आगे का मार्ग दिखाया।
- जबकि यह तकनीक उनके समकालीन बंगाल शैली के चित्रकारों की शैली के विपरीत थी।
- उनके समकालीन चित्रकार अविनिंद्रंथ टैगोर, नंदलाल बोस व अब्दुररहमान चुगताई थे।
उपलब्धियां
- वह पेरिस में ग्रैंड सैलून की एसोसिएट के रूप में चुनी गयीं थी।
- वे चुनी जाने वाली सबसे कम उम्र की एकमात्र एशियाई कलाकार भी थीं।
- यह पदक वहाँ का प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता था।
- पेरिस में ‘यंग गर्ल्स’ नामक उनके चित्र के लिए स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था।
- अमृता शेरगिल की कृतियों को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय कला निधि घोषित किया गया है।
- उनकी अधिकांश पेंटिंग नई दिल्ली में नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट की शोभा बढ़ाती हैं।
- हालाँकि उनके जीवित रहने के दौरान उनकी पेंटिंग काफी हद तक बिकी नहीं थीं।
- लेकिन 2006 में, ‘विलेज सीन’ नामक पेंटिंग नई दिल्ली में 6.9 करोड़ रुपये में बिकी।
- उस समय, यह भारत में किसी भी भारतीय पेंटिंग के लिए दी जाने वाली सबसे अधिक राशि थी।
- भारतीय डाक ने साल 1978 में उनकी पेंटिंग ‘हिल वीमेन’ पर डाक टिकट जारी किया था।
- लुटियन की दिल्ली को अमृता शेरगिल मार्ग के नाम से जाना जाता है।
- बुडापेस्ट के भारतीय सांस्कृतिक केंद्र का नाम उनके नाम पर रखा गया है।
- 2013 यूनेस्को ने अमृता शेर-गिल की 100वीं वर्षगांठ को अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के रूप में घोषित किया।
निष्कर्ष
कम समय में एक बड़ा नाम कमाना, किसी बहुत बड़ी उपलब्धि से कम नहीं। इस चित्रकार ने ये किया है। वास्तव में अमृता शेरगिल (Amrita Sher-Gil) आज़ादी से पहले की सबसे प्रतिभाशाली कलाकारों में से एक थीं। वास्तव में, ख़ास बात ये भी थी की इन्होंने भारत को अपने चित्रण व भविष्य के लिए चुना था।
भारतीयता में पश्चिमी कला तकनीक मिलाया। पारंपरिक और पश्चिमी कला रूपों का सम्मिश्रण किया। बेवाकि-बेपरवाह जीवन व प्रतिभा के लिए उन्हें भारत की फ्रीडा काहलो की संज्ञा दी जाती है। मगर, मेरा मनना है कि वो अपने आप में लाजवाब है और उनका नाम ही उनकी पहचान है।
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