राजा रवि वर्मा भारतीय चित्रकला के वो चमकते सितारें हैं| जिनकी चमक साल दर साल बडती जा रही है| चलिए उनके जीवन व कला पर प्रकाश डालते हैं| इस लेख में है:
- प्रस्तावन
- प्रसंभिक जीवन
- राजा रवि वर्मा को त्रावनकोर महाराजा का सरंक्षण
- थियोडोर जोनसन का महाराजा के दरबार में आगमन
- कला जगत में रवि वर्मा की प्रभावशाली उपस्थिति
- राजा रवि वर्मा की कला
- लिथोग्राफी प्रेस
- परीक्षा उपयोगी कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- निष्कर्ष
प्रस्तावना
एक समय की बात है, केरल में किलिमानूर के एक गाँव में स्थित मंदिर की सफ़ेद दीवार पर कोच्चु नमक बालक ने कोयले से चित्रकारी कर दी थी. जिससे नाराज़ हो कर माली स्वामी के पास भाग कर उसकी शिकायत ले कर गया| उसकी शिकायत पर स्वामी स्वयं वहां आये और बालक कोच्चु की चित्रकारी देख के दांग रह गये|
ये स्वामी किलिमानूर के राजा राज वर्मा थे| ये कोच्चु नामक बालक ही भारतीय चित्रकला का राजा व भारतीय चित्रकला इतिहास का एक अमर नाम राजा रवि वर्मा था| ये घटना चित्रकला की दुनिया में उनके पहली बार पदार्पण की घटना थी|
प्राम्भिक जीवन
राजा रवि वर्मा का जन्म 1848 में त्रावनकोर के किलिमानूर गाँव में हुआ था| इनकी माँ उमा अम्बा बाई संगीत में दक्ष थी| जबकि पिता नीलकांत भट्ट वेदों के ज्ञाता व संस्कृत के पंडित थे| उस समय शादी के बाद पति को पत्नी के घर में रहने की प्रथा थी| अतः रवि वर्मा के पिता उनकी माँ के भाई राजा राज वर्मा के यहाँ रहते थे|
कोच्चु यानि के रवि वर्मा के मामा राज वर्मा ने उन्हें चित्रकला की शिक्षा देने का निर्णय किया| राजा राज वर्मा स्वयं एक अछे चित्रकार थे| अतः रवि वर्मा की प्रारंभिक शिक्षा में माता पिता व मामा के कारण कला, संगीत व संस्कृत का समावेश हुआ| प्रारंभ में रवि वर्मा ने तंजोर शैली के चित्रों का अध्यन किया|
बाद में उनके मामा उन्हें त्रावनकोर के महाराज अयील्यम थिरूनल के दरबार में ले गये | वहाँ रवि वर्मा को उनका सरक्षक मिला|
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राजा रवि वर्मा को त्रावनकोर महाराजा का सरंक्षण
महाराज थिरूनल रवि वर्मा से बहुत प्रभावित थे| वो चाहते थे कि रवि वर्मा को कला की उच्च शिक्षा मिले| अतः उन्होंने अपने राज चित्रकार रामास्वामी नायडू से उन्हें कला की शिक्षा देने को कहा| रामास्वामी नायडू को जल्द ही रवि वर्मा की प्रतिभा का आभास हो गया| उन्हें लगा कि अगर इस बालक को सिखा दिया तो ये खुद के पैर में कुल्हाड़ी मरना होगा| अतः उन्होंने रवि वर्मा को कुछ नही सिखाया बल्कि उल्टा उसे डांटने फटकारने लगे|
इस स्थिति का आभास महाराजा थिरूनल को हो गया| उन्होंने रवि वर्मा को कुछ यूरोपीय चित्र दिए व साथ में एक रंगों का सेट भी दिया| उन्होंने रवि वर्मा से कहा की खूब अभ्यास करो और रंग भरो|
थियोडोर जोनसन का महाराजा के दरबार में आगमन
इसी दौरान एक योरोपीय चित्रकार थियोडोर जोनसन महाराजा के दरबार में राज परिवार के सदस्यों के व्यक्ति चित्र बनाने आया| उससे महाराजा ने रवि वर्मा को चित्रकला सिखाने को कहा| पहले तो थियोडोर जोनसन ने मन कर दीया| फिर राजा ने रवि वर्मा को अपने पास खड़े करने को कहा तो उसे भी उसने मन कर दिया| इस पर महाराजा थिरूनल ने उससे चित्र बनवाने से मन कर दिया|
अपनी आर्थिक व सम्मान की हानि होते देख उसे महाराजा की बात मन ली और रवि वर्मा को अपने पास खड़े होने की अनुमति इस दे दी| प्रतिभाशाली रवि वर्मा के लिए इतना हे काफी था| इस अवसर का लाभ उठा के उन्होंने यूरोपीय तेल चित्रण की पद्धति सीखी और जल्द ही इस शैली में प्रवीण हो गये| वे पुरे लगन व महनत से चित्रकला का निरंतर अभ्यास करते रहे|
कला जगत में रवि वर्मा की प्रभावशाली उपस्थिति
- 1873 में मद्रास में मद्रास फाइन आर्ट्स सोसाइटी की प्रदर्शनी हुई।
- इसमें रवि वर्मा ने पहली बार अपनी नायर महिला अपने बाल संवारती हुई नमक पेंटिंग भेजी।
- यह पेंटिंग उस प्रदर्शनी में सर्वश्रेष्ट कृति आंकी गयी।
- मद्रास के गवर्नर की ओर से उन्हें एक स्वर्ण पदक पुरुस्कार के रूप में दिया गया।
- यहाँ से उनकी ख्याति व चित्रों की धूम धीरे-धीरे पूरी दुनिया में हो गयी।
- इसके बाद विएना में भी प्रदर्शनी में आपको मेरिट सर्टिफिकेट मिला।
- बाद में शिकागो में भी एक प्रदर्शनी में आपको स्वर्ण पदक मिले|
रवि वर्मा की कला
राजा रवि वर्मा को भारतीय चित्रकला इतिहास का राजा कहा जाता है| भारत में तेल पद्धति का पहली बार प्रयोग का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है| कुछ कला विद्वान उन्हें भारत का पहला मॉडर्न कलाकार मानते हैं| क्यूंकि उन्होंने यूरोपीय यथार्थवादी तैल चीत्रण शैली में भारतीय परिवेश व भारतीय विषयों को चित्रित किया|
जबकि उनके आलोचक व कट्टरपंथी लोग उन पर कला के नाम अश्लिलता व देवीदेवताओं को अपवित्र करने का आरोप भी लागतें हैं| इस सम्बन्ध में उनपर कई मुकदमें भी चलाये गये जिससे उन्हें काफी आर्थिक व मानसिक क्षति हुई|
किन्तु फिर भी भारतीय चित्रकला में उनके योगदान व उनके चित्रों का आकर्षण व सुन्दरता उन्हें आज भी चित्रकला जगत का राजा बनाये हुए है|
राजा रवि वर्मा ने तीन किस्म के चित्रों को बनाया: राजा-महाराजाओं के व्यक्ति चित्र, आम लोगों के चित्र व हिन्दू देवी देवताओं के साथ साथ पुराणों के चित्र| वे पहले भारतीय चित्रकार हैं जिन्होंने देवी देवताओं को रूप दिया व उनको अपनी प्रेस के माध्यम से आम जन जन के घरों तक पहुँचाया|
उनके व्यक्ति चित्रों की इतनी मांग थी की हरराज घराने के लोग उनसे अपने व्यक्ति चित्र बनवाना चाहते थे| उनके द्वारा बनाये गया पोराणिक कथानकों व हिन्दू देवी देवताओं के चित्र भी बहुत लोकप्रिय हुए|
उनके द्वारा बनाया गया कालिदास के महाकाव्य शाकुंतलम का चित्र जिसमें शकुन्तला राजा दुष्यंत को पत्र लिखते हुए दर्शाया गया है, बहुत प्रसिद्द हुआ|
लिथोग्राफी प्रेस
- राजा रवि वर्मा ने मुंबई में लिथोग्रभी प्रेस स्थापित की।
- यह प्रेस उन्होंने उस समय के त्रावनकोर के दीवान टी. माधवन राव की सलाह पर 1894 में खोली।
- इस प्रेस में उन्होंने अपने धार्मिक चित्रों को छाप कर आम जन जन तक पहुँचाया।
- इसी प्रेस में दादा साहेब फाल्के भी काम करते थे| कहा जाता है कि आगे चल के इसमें घटा हुआ।
- अतः राजा रवि वर्मा ने इस मशीन को बेच के इसके पैसे दादासाहेब को दे दिए थे।
- इन्ही पैसों से दादा साहेब ने अपना आगे का काम शुरू किया |
परीक्षा उपयोगी कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- रवि वर्मा का जन्म केरल के किलिमानूर गाँव में हुआ था|
- उनके भारतीय गुरु रामास्वामी नायडू व विदेशी गुरु थियोडोर जोनसन थे मने जाते हैं|
- उन्हें को केसरे हिन्द की उपाधि उस समय की ब्रटिश सरकार ने दी थी|
- देवी देवताओं को रवि वर्मा ने अपने छापा खाने के द्वारा जन जन के घरों तक पहली बार पहुँचाया|
- भारत में पहली लिथोग्राफी की प्रिंटिंग प्रेस स्थापित करने वाले व्यक्ति राजा रवि वर्मा हैं|
- दादा साहेब फाल्के आपकी प्रेस में ही काम करते थे |
- कहा जाता है कि प्रेस को बेच कर रवि वर्मा ने उने पैसे दिए।
- जिससे उन्होंने आगे चल के अपना काम शुरू किया|
- भारत में पहली बार तैल तकनीक को लोकप्रिय व प्रयोग करने वाले पहले चित्रकार थे|
- रवि वर्मा को कुछ विद्वान भारत का पहला आधुनिक चित्रकार मानते हैं|
- इनके चित्रण के विषय पोराणिक कथाएं, देवीदेवताओं के चित्र रहे हैं|
- इन्होनें लोगों के चित्र व राजा महाराजाओं के व्यक्ति चित्र भी खूब बनाये हैं|
निष्कर्ष
राजा रवि वर्मा को भारतीय चित्रकला इतिहास का राजा कहा जाता है| भारत में तेल पद्धति को पहली बार प्रयोग उन्हीं ने किया है| कुछ कला विद्वान उन्हें भारत का पहला मॉडर्न कलाकार मानते हैं| रवि वर्मा भारतीय आधुनिक चित्रकला से पहले व भारतीय चित्रकला को एक नयी दिशा देने वाले चित्रकार हैं। इनका कला में योगदान व उपलब्धियों को छू पाना किसी अन्य भारतीय चित्रकार से परे है।
कला छात्रों से मेरा आग्रह है कि परीक्षा की दृष्टि से भी और भारत की कला विरासत की दृष्टि से भी कम्पनी शैल, बंगाल शैली और राजा रवि वर्मा का अच्छे से अध्ययन करें। यह लेख अंत तक पड़ने के लिए आपका धन्यवाद। इसी प्रकार के अन्य लेख पड़ने के लिए हम से जुड़ें रहें।
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