प्रभाववाद की कला (Impressionism Art) एक ख़ास क़िस्म की शैली का नाम है। इस शैली ने रोमांसवाद व यथार्थवादी जैसी पुरानी सभी कला शैलियों के नियमों को नकार दिया। प्रभाववादी कला के चित्रकार रोज़ की ज़िंदगी की सादगी व सरलता से अपनी कला की प्रेरणा लेने लगे।
इससे पूर्व यूरोप की कला में रोमांसवादी कला व यथार्थवादी कला ने नए विचारों के साथ एक महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसी क्रांतिकारी कदम को आगे बड़ते हुए प्रभाववाद की कला भी आगे आयी। इसने यूरोप के साथ-साथ पूरे विश्व की कला को प्रभावित किया।
(रोमांसवादी कला व यथार्थवादी कला के विषय में पहले ही विस्तार से बताया जा चुका है। यदि आपने अब तक वो लेख नहीं पढ़े हैं तो पढ़ ले उनके लिंक यहाँ दिए गए हैं- Romanticism in Art & Realism in Art) तो चलिए निम्नलिखित बिंदुओं पर हम प्रभाववाद की कला की विस्तार से चर्चा करते हैं :
- प्रष्ठ-भूमि
- प्रभाववादी कला (Impressionism Art) का उदय
- प्रभाववादी कला की विशेषताएँ
- तकनीक व विषयवस्तु
- प्रभाववादी कला का विस्तार
- प्रमुख चित्रकार
- निष्कर्ष
प्रष्ठ-भूमि
- 19वीं शताब्दी में यूरोप की कला में कई सारे परिवर्तन व विकास हो रहे थे। कला की ही अगर बात करें तो कई सारी कला शैलियों का दौर चला।
- प्रभाववाद से पूर्व की अंतिम दो शैलियों या कला आंदोलनों में रोमांसवाद की कला व यथार्थवाद की कला रहीं हैं।
- रोमांसवाद ने जहां शास्त्रीय नियमों को नकार कर काल्पनिक व साहसिक घटनाओं को अपना विषय बनाया था। वहीं इससे आगे बढ़ के यथार्थवादी कला ने इन सब को नकार कर सामान्य जीवन व विषयों को चुना था।
- 1827 में केमरे का अविष्कार हुआ जिसने यथार्थवादी कला के अस्तित्व को चुनौती दी। अतः कला को रचनात्मक व अतुलनीय बनाने हेतु नवाचार आवश्यक था।
- परिणामस्वरूप नए चित्रकारों के वंश ने पूर्व की कला शैलियों का अध्ययन किया। इस अध्ययन का उद्देश्य उन नए सिद्धांतों की खोज थी जिससे कला को एक नया व उचित मार्ग मिल सके।
- इन नए चित्रकारों के प्रयास से प्रभाववाद का उदय हुआ। इस शैली में चित्रकारों ने स्वतंत्र विचारों के साथ व्यक्तिगत अनुभूति को महत्व दिया।
- इस कला आंदोलन की एक ख़ास बात ये भी है कि इसके चित्रकारों ने लगातार नए प्रयोग किए। उनके प्रयोगों से प्रभाववादी कला का ना केवल विस्तार हुआ बल्कि अन्य दूसरी कला धाराओं का जन्म भी हुआ।
- नयी कला धाराओं व उनके जनक की बात करें तो निम्नलिखित तालिका से इसको समझा जा सकता है:
चित्रशैली | जनक/प्रेरक |
अभिव्यंजनवाद | वान गोग |
बिंदुवाद | सोरा |
घनवाद | सेजां |
प्रतिकवाद | पाल गोगिन |
प्रभाववादी कला (Impressionism Art) का उदय
प्रभाववादी कला (Impressionism Art) का उदय फ़्रान्स में 1860 से 1880 के मध्य हुआ था। जबकि वास्तविक रूप से प्रभाववाद शब्द का पहली बार प्रयोग 1874 में हुआ था। वास्तव में हुआ ये था कि उस समय पेरिस सेलन की राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में पारंपरिक कलाकरों को महत्व दिया जा रहा था। जिसके कारण नवीन विचारधारा व तकनीक के कलाकरों के चित्रों को अस्वीकृत किया जा रहा था। इन अस्वीकृत चित्रकारों में असंतोष व विद्रोह था। अतः इन अस्वीकृत चित्रकारों की अलग से एक प्रदर्शनी आयोजित की गयी। इस प्रदर्शनी का शीर्षक “अज्ञात चित्रकारों, मूर्तिकाओं व रेखा कलाकरों की परिषद” रखा गया। इस प्रदर्शनी में एक सो पैंसठ चित्रों को प्रदर्शित किया गया।
इस प्रदर्शनी की कला समीक्षकों ने बहुत आलोचना की। इन्हीं समीक्षकों में से एक लुई लेराय ने भी समाचार पत्र ल शारिवारी में अपनी समीक्षा प्रकाशित की। लुई ने मोने के चित्र (इम्प्रेशन सनराइज़) को आधार बना कर अपनी समीक्षा के लेख का मुख्य शीर्षक नाम प्रभाववादियों की प्रदर्शनी दिया। इस शीर्षक को चित्रकारों व दर्शकों ने समान रूप से स्वीकार किया। अतः इस प्रकार प्रभाववाद (Impressionism) का औपचारिक सूत्रपात हुआ। प्रभाववाद की पहली कृति मोने की इम्प्रेशन सनराइज़ (Impression, Sunrise) को माना गया। इस प्रकार इस कला आंदोलन का जनक भी क्लोड मोने (Claude Oscar Monet) को माना गया।
(For Related Information – Impressionism Art in Hindi & Claude Monet)
प्रभाववादी कला (Impressionism Art) की विशेषताएँ
- पूर्व की शैलियों व नियमों को प्रभाववादी कला शैली ने नकार दिया।
- प्रभाववादी चित्रों में तेज चटक रंगों का प्रयोग किया गया।
- एक साथ दो विरोधी रंगों को बिना मिलाए प्रयोग किया जाने लगा।
- प्रभाववादी कलाकरों ने छाया का अपने चित्रों में परित्याग किया।
- विषय वस्तु की अपेक्षा उस पर पड़ने वाले प्रकाश को अधिक महत्व। प्रभाव वादी चित्रकार प्रकाश के क्षण-क्षण बदलते प्रभावों को अपने चित्रों में उकेरने का प्रयास करते थे।
- काले व भूरे (ग्रे) रंगों का प्रयोग प्रभाव वादी चित्रकारों ने त्याग दिया था।
तकनीक व विषयवस्तु
- प्रभाववाद (Impressionism) वस्तु पर पड़ने वाले प्रकाश के प्रभाव को महत्व देता था। प्रकाश व इसके प्रभाव पर प्रभाववादी चित्रकारों ने वैज्ञानिक ढंग से विश्लेषणात्मक अध्ययन किए।
- प्रभाववादी चित्रकार सूर्या के श्वेत (सफ़ेद) प्रकाश को सात रंगों में विश्लेषण करते। इन सात रंगों का प्रयोग अपने चित्रों में करते थे।
- इस कला आंदोलन के चित्रों में कहीं भी मिश्रित रंगों का रयोग नहीं किया गाय है। इस आंदोलन के चित्रकार शुद्ध रंगों को अपने चित्रों में लगते थे।
- प्रभाववादी चित्रकार खुले आसमान के निछे बेठ कर चित्रण किया करते थे। खुले आसमान में ये प्रकाश के क्षण-क्षण बदले प्रभावों को बारीकी से देखते और समझते थे। इस अध्ययन के पश्चात उन्होंने पाया की प्राकृति में कहीं भी छाया (परछाईं) नहीं है। अतः उन्होंने भी आपने चित्रों में परछाईं को नहीं देखाया।
- प्रभाववाद ने विषय के प्रभाव को नकार दिया था। वास्तव में विषय का प्रभाव कलाकार के मस्तिष्क में पढ़ता था, उसी की अभिव्यक्ति की जाने लगी।
- प्रभाववादी कला (Impressionism Art) में मुख्यतः प्राकृतिक दृश्यों व मानवों के क्रियाकलापों को चित्रित कीय गया। ज़्यादातर नदियाँ, तालाब, नगरीय दृश्य, बंदरगाह व मानव स्वरूपों को चित्रों के विषय के रूप में चुना गया।
प्रभाववादी कला (Impressionism Art) का विस्तार
आधुनिक यूरोप की कला में प्रभाववाद (Impressionism) ने कई तरीक़े से योगदान दिया। ये आंदोलन ना सिर्फ़ चला, बल्कि इसने कई अन्य नवीन कला धाराओं के मार्ग को खोला। वे नयी कला धाराओं अभिव्यंजनावाद, बिंदुबाद, घनवाद व प्रतीकवाद रहीं हैं। ख़ैर ये तो नयी कला धाराएँ थीं, किंतु प्रभाववाद ने स्वयं का भी विस्तार किया है। अतः प्रभाववाद (Impressionism) के उदय के बाद इसके दो महतवपूर्ण युग और माने जाते हैं:
उपरोक्त वादों के बारे में अलग लेख में विस्तार से चर्चा करेंगे।
प्रमुख चित्रकार
प्रभाववाद (Impressionism) में मुख्य रूप से जिन कलाकरों का विशेष योगदान रहा है उनके नाम हैं- मोने, पिसरो, सिसली, देगा, रेनाय, बेजिल, सोरा, सेजां, वान गोग, गोगिन,हेनरी रूसों। इनमें सबसे प्रभाववाद के प्रति अधिक समर्पित व निष्ठावान चित्रकार मोने, पिसरो, व सिसली रहे हैं।
निष्कर्ष
प्रभाववाद कला आंदोलन (Impressionism Art) यूरोप की आधुनिक चित्रकला का बहुत ही ख़ास आंदोलन था। इसने नव प्रभाववाद (Neo Impressionism) व उत्तर प्रभाववाद (Post Impressionism Art) के रूप में स्वयं का भी विस्तार किया। इस आंदोलन ने जहां एक ओर कला को एक नया आयाम व तकनीक दी। वहीं दूसरी ओर नवीन कला धाराओं के लिए भी मार्ग खोला। रोमांसवादी कला ने साहसिक घटनाओं के माध्यम से कला को शास्त्रीय नियमों से आज़ाद कराया था। इसके बाद यथार्थवाद ने कला को जैन सामान्य तक पहचाय था। कला के विकास क्रम में प्रभाववाद ने प्रकाश के गुणों व प्रभावों को आत्माभिव्यक्ति का एक नया माध्यम बनाया। निश्चित रूप से कला के विकास में प्रभाववाद कला आंदोलन का योगदान महत्वपूर्ण है।
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